रायपुर: कहावत है कि मेहनत का फल मीठा होता है, लेकिन क्या आपको पता है कि मेहनत का फल अनोखा भी हो सकता है? छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव स्थित चारभाठा गांव के किसान खेमन साहू को अपने आम के बाग से ऐसे ही अनोखे फल मिलते हैं। खेमन ने अपने आम के बाग में आम की एक विशेष पौध विकसित कर लगाई है। इस पौध के पेड़ों पर तीन तरह के आम लगे हैं। वैज्ञानिक तकनीक से तैयार इन पेड़ों पर लगे आमों के प्रकार, नाम और स्वाद भी अलग-अलग हैं।
पांच-छह फीट ऊंचे इन पेड़ों में इतने सारे आम लगे हैं कि डालियां झुक गई हैं। ऐसे में फलों को तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने की जरूरत नहीं है। उन्हें जमीन पर खड़े-खड़े गिना व तोड़ा जा सकता है। खेमन का बाग देखने आसपास के गांवों के भी लोग पहुंचते हैं।
जंगल से लगते गांव चारभाठा को किसान खेमन ने नई पहचान दी है। उन्होंने अपने 10 एकड़ के आम के बाग में विज्ञान की बदौलत लीक से हटकर नया प्रयोग कर दिखाया है।
केवल पांच-छह फीट के पेड़ों पर तीन अलग-अलग किस्म के ढेरों आम लदे हुए हैं। फिलहाल यह आम आचार डालने लायक हो गए हैं, अब बस इनके पकने का इंतजार है।
खेमन ने बताया कि उनके बाग में सभी छोटे आम के पेड़ क्रॉस पद्धति या ग्राफ्टिंग पद्धति के हैं। क्रॉस पद्धति में अलग-अलग किस्म जैसे दशहरी, लंगड़ा और कलमी आम के बीज जमीन में रोपे जाते हैं। इसके बाद उस स्थान पर नियमित रूप से पानी डालते हैं। वहां उगाए गए आम के पेड़ जब दो फीट से बड़े हो जाते हैं, तब उनमें से एक की कलम (डंगाल) काटकर दूसरे पेड़ की कलम काटकर वहां जोड़ दी जाती है। इसी पेड़ की एक अन्य कलम काटकर उस जगह आम की तीसरी किस्म के पेड़ की कलम जोड़ दी जाती है। उसके बाद उन जोड़ों पर कसकर कपड़े की पट्टी बांध दी जाती है। लगभग 15 दिन बाद काटकर जोड़ी गईं कलम अच्छे से चिपक जाती हैं। यह पेड़ अब तीन नस्ल का हो जाता है।
डेढ़ से दो साल बाद इस पेड़ पर आम लगने लगते हैं। यह पेड़ अधिकतम पांच से सात फीट के रहते हैं। खेमन ने इस पद्धति से अपने बाग में कई पेड़ लगाए हैं।
बकौल खेमन शुरुआत में सरकारी मदद ली थी, लेकिन अब बिना किसी मदद के सफल तरीके से खेती कर रहा हूं। मेरे बाग में कई लोग मजदूरी कर अपना परिवार चला रहे हैं। आने वाले समय में कुछ और नए प्रयोग करने की सोच रहा हूं।