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उत्तर प्रदेश ही नहीं, इन 13 अन्य राज्यों में भी है इंसेफेलाइटिस का असर

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में संदिग्ध हालात में एक के बाद एक 60 बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है, मगर उत्तर प्रदेश समेत देश के 14 राज्यों में इस बीमारी का असर है और रोकथाम के बजाय इलाज पर ध्यान देने की वजह से यह बीमारी बरकरार है।

Edited by: India TV News Desk
Updated on: August 15, 2017 17:18 IST
gorakhpur- India TV Hindi
gorakhpur

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में संदिग्ध हालात में एक के बाद एक 60 बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है, मगर उत्तर प्रदेश समेत देश के 14 राज्यों में इस बीमारी का असर है और रोकथाम के बजाय इलाज पर ध्यान देने की वजह से यह बीमारी बरकरार है।

केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम एनवीबीडीसीपी निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में इंसेफेलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा उार प्रदेश के पूर्वांचल में इस बीमारी का प्रकोप काफी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर, देवरिया और मऊ समेत 12 जिले इससे प्रभावित हैं।

गोरखपुर समेत पूर्वांचल में मस्तिष्क ज्वर और जलजनित बीमारी इंटेरो वायरल की रोकथाम के लिये काम रहे डॉक्टर आर. एन. सिंह ने इसकी तस्दीक करते हुए बताया कि असम और बिहार के कुछ जिलों के हालात गोरखपुर से कम बुरे नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि बाकी राज्यों में इंसेफेलाइटिस की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा दबा दिया जाता है इसलिए गोरखपुर समेत पूर्वांचल में इस बीमारी की मौजूदगी की गूंज सबसे ज्यादा सुनाई देती है।

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एनवीबीडीसीपी के आंकड़ों के अनुसार असम में इस साल जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की वजह से उत्तर प्रदेश के मुकाबले ज्यादा लोगों की मौत हुई है। उत्तर प्रदेश में इन दोनों प्रकार के संक्रमणों से अब तक कुल 155 लोगों की मृत्यु हुई है, वहीं असम में यह आंकड़ा 195 तक पहुंच चुका है। पश्चिम बंगाल में इस साल अब तक 91 लोग मर चुके हैं। असम में जापानी इंसेफेलाइटिस से मरने वालों की तादाद उत्तर प्रदेश के मुकाबले कहीं ज्यादा है।

डॉक्टर सिंह ने कहा कि दरअसल, सरकारों को पता ही नहीं है कि उन्हें करना क्या है। शासकीय तथा सामाजिक प्रयासों से टीकाकरण के जरिये जापानी इंसेफेलाइटिस के मामलों में तो कमी लायी जा चुकी है लेकिन जलजनित रोग इंटेरो वायरल को रोकने के लिये कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। इस समय सबसे ज्यादा मौतें इंटेरो वायरल की वजह से ही हो रही हैं।

डाक्टर सिंह ने कहा कि इसकी रोकथाम के लिये होलिया मॉडल ऑफ वाटर प्यूरीफिकेशन का प्रयोग किया जाना चाहिये। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पर मुहर लगायी है। इस प्रक्रिया में पीने के पानी को करीब छह घंटे तक धूप में रखा जाता है, जिससे उसमें हानिकारक विषाणु मर जाते हैं। पूर्वांचल में ही दिमागी बुखार का प्रकोप फैलने के कारण के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने बताया कि इस इलाके में सबसे ज्यादा अशिक्षा और पिछड़ापन है। लोगों में साफ-सफाई की आदत नहीं है। साथ ही जागरूकता की कमी की वजह से यह इलाका इन संचारी रोगों का गढ़ बना हुआ है।

उन्होंने इंसेफेलाइटिस की रोकथाम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि योगी इस बीमारी के उन्मूलन के लिये वर्ष 1996 से लगातार काम कर रहे हैं। योगी के प्रयासों से वर्ष 2006 में 65 लाख बच्चों को टीके लगवाये गये थे।

उल्लेखनीय है कि पिछले तीन दशक के दौरान पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस की वजह से 50 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इस साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में अब तक इस बीमारी से कुल 139 बच्चों की मृत्यु हुई है। पूरे राज्य में यह आंकड़ा 155 तक पहुंच चुका है। पिछले साल 641 तथा वर्ष 2015 में 491 बच्चों की मौत हुई थी। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पूर्वांचल के अलावा बिहार और नेपाल से भी मरीज इलाज कराने आते हैं।

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