नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में मृत्युदंड की सजा पाए चारों दोषियों की फांसी पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। यह रोक तब तक रहेगी जब तक कि दोषियों की दया याचिका पर फैसला नहीं हो जाता। बीते छह हफ्तों में यह तीसरा मौका है जब चारों आरोपियों की फांसी की टाली गई है। चारों दोषियों को मंगलवार सुबह छह बजे एक साथ फांसी दी जानी थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि दोषी पवन गुप्ता की दया याचिका के निस्तारण तक मौत की सजा नहीं दी जा सकती।
इन चारों दोषियों को फांसी देने के लिये सबसे पहले 22 जनवरी की तारीख तय की गई थी, जिसे सात जनवरी को अदालत ने एक फरवरी तक के लिये टाल दिया। लेकिन 31 जनवरी को अदालत ने फांसी पर अनिश्चितकाल के लिये रोक लगा दी। इसके बाद 17 फरवरी को अदालत ने एक बार फिर फांसी के लिये मृत्यु वारंट जारी करते हुए तीन मार्च को सुबह छह बजे का वक्त सजा के लिये मुकर्रर किया।
राष्ट्रपति कोविंद द्वारा पूर्व में तीन दोषियों की दया याचिकाओं को जिस तरह खारिज किया गया ऐसे में इस बात की संभावना है कि पवन की याचिका का अंजाम भी वैसा ही होगा। ऐसे में उम्मीद है कि चारों दोषियों को इस महीने के दूसरे पखवाड़े में सजा मिल सकती है। दिल्ली कारागार नियम के मुताबिक अगर दया याचिका दायर की जाती है तो उसके खारिज होने के बाद दोषी को 14 दिन का वक्त दिया जाता है।
अदालत ने चारों को 16 दिसंबर 2012 को दक्षिणी दिल्ली में एक चलती बस में 23 वर्षीय फिजियोथेरेपी की छात्रा से दुष्कर्म का दोषी पाया था निर्भया की सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 मार्च 2014 को मृत्युदंड के फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी। दोषियों ने इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार और सुधारात्मक याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं के खारिज होने पर मृत्युदंड से बचने के लिये दोषियों ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिकाएं दायर की थीं।
निर्भया की मां आशा देवी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह हमारी व्यवस्था की नाकामी को दर्शाता है। पूरी दुनिया देख रही है कि भारत में कैसे न्याय में देरी की जा रही है।’’ आशा देवी ने कहा, ‘‘मैं हर रोज उम्मीद खोती हूं लेकिन हर रोज फिर खड़ी हो जाती हूं। उन्हें फांसी पर लटकना ही होगा। निर्भया मामले से भयावह और कुछ नहीं हो सकता, लेकिन फिर भी मैं न्याय के लिए संघर्ष कर रही हूं।’’
न्यायाधीश राणा ने कहा कि पवन की दया याचिका के राष्ट्रपति के समक्ष लंबित रहने तक चारों की फांसी पर रोक लगाई जाती है। न्यायाधीश ने कहा, “पीड़ित पक्ष की तरफ से कड़े प्रतिरोध के बावजूद, मेरा विचार है कि किसी भी दोषी के मन में अपने रचयिता से मिलते समय ये शिकायत नहीं होनी चाहिए कि देश की अदालत ने उसे कानूनी उपायों का इस्तेमाल करने की इजाजत देने में निष्पक्ष रूप से काम नहीं किया।” न्यायाधीश ने कहा, “चर्चा के समग्र प्रभाव के मद्देनजर, मेरी राय है कि दोषी की दया याचिका के निस्तारण तक मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता। इसलिये यहां यह आदेश दिया जाता है कि तीन मार्च को सुबह छह बजे निर्धारित सभी दोषियों के मृत्यु वारंट पर तामील अगले आदेश तक रोकी जाती है।”
न्यायाधीश ने सुधारात्मक और दया अर्जियां दायर करने में इतनी देरी करने के लिए दोषी के वकील की खिंचाई की। पवन की सुधारात्मक याचिका इससे पहले दिन में उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दी थी। अदालत ने इससे पहले दिन में पवन और अक्षय कुमार सिंह की उन अर्जियों को खारिज कर दिया जिसमें दोनों ने अपने मृत्यु वारंटों पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। यद्यपि पवन के वकील ए पी सिंह ने कहा कि उन्होंने एक दया अर्जी दायर की है और फांसी की तामील पर रोक लगनी चाहिए।
अदालत ने उसके बाद उनसे कहा कि वह अपने मामले की जिरह के लिए दोपहर भोजनावकाश के बाद आएं। भोजनावकाश के बाद की सुनवायी के दौरान अदालत ने सिंह की यह कहते हुए खिंचाई की, ‘‘आप आग से खेल रहे हैं, आपको सतर्क रहना चाहिए। किसी के द्वारा एक गलत कदम, और आपको परिणाम पता हैं।’’ सुनवायी के दौरान तिहाड़ जेल प्राधिकारियों ने कहा कि दया याचिका दायर होने के बाद गेंद अब सरकार के पाले में है और न्यायाधीश की फिलहाल कोई भूमिका नहीं है।