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निर्भया गैंगरेप केस: आरोपियों के खिलाफ जल्द जारी हो सकता हैं डेथ वारंट, जानें कैसे दी जाती है फांसी?

निर्भया के सभी दोषी फांसी के फंदे के बेहद करीब है 17 दिसंबर को दोषी अक्षय की सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन की सुनवाई और 18 दिसंबर को पटियाला कोर्ट में सुनवाई के बाद इन दरिंदो का ब्लैक वारन्ट यानि डेथ वारन्ट कभी भी जारी हो सकता है जिसके बाद इन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया जाएगा।

Reported by: Abhay Parashar @abhayparashar
Published on: December 14, 2019 18:30 IST
Nirbhaya case- India TV Hindi
Nirbhaya case: Why execution of four convicts is a challenge for Tihar jail

नई दिल्ली: निर्भया के सभी दोषी फांसी के फंदे के बेहद करीब है 17 दिसंबर को दोषी अक्षय की सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन की सुनवाई और 18 दिसंबर को पटियाला कोर्ट में सुनवाई के बाद इन दरिंदो का ब्लैक वारन्ट यानि डेथ वारन्ट कभी भी जारी हो सकता है जिसके बाद इन्हें फांसी के फंदे पर लटका दिया जाएगा। 16 दिसंबर 2012 को निर्भया अपने दोस्त के साथ मुनरिका के बस स्टेंड पर खड़ी थी और घर जाने के लिए ऑटो का इंतजार कर रही थी लेकिन जब किसी भी ऑटो ने चलने से इंकार कर दिया तो मजबूरन निर्भया और उसके दोस्त को वहां से गुजर रही एक सफेद रंग की प्राइवेट क्लस्टर बस में चढ़ना पड़ा, इस बात से अंजान कि इस बस में वहशी दरिंदे उनके साथ ऐसी वारदात अंजाम देने के इंतजार में है जिसके बाद सब खत्म हो जाएगा। 

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सफेद रंग की बस में निर्भया और उसका दोस्त इन सभी 6 दरिंदे जिनमें एक नाबालिग भी शामिल था उनसे दया की भीख मांगते रहे लेकिन नशे में धुत इन सभी दोषी अक्षय, पवन, मुकेश, विनय, राम सिंह और एक नाबालिग के सर पर हैवान सवार था, इन्होंने न केवल निर्भया और उसके दोस्त के साथ न केवल मारपीट की बल्कि निर्भया के साथ गैंगरेप कर उसको और उसके दोस्त को बिना कपड़ों के जख्मी हालत में माहिपालपुर के पास फेंक कर चले गए जिसके बाद एक शख्स ने पीसीआर कॉल कर इन्हें अस्पताल पहुंचाया। इन दरिंदो और इस बस तक पहुचना पुलिस के बेहद बड़ी चुनौती थी, सफेद रंग की ऐसी 10,000 बसों की जांच के बाद एक मुखबिर की खबर के बाद पुलिस इस बस तक पहुचीं और सभी आरोपियों को पकड़ा गया।

देखें कैसा होता है डेथ वारंट, कानूनी भाषा में इसे क्या कहा जाता है?

  • ब्लैक वारंट कोर्ट जारी करता है, इसे ही आम भाषा मे डेथ वारंट भी कहते हैं, कानून की भाषा मे फॉर्म नम्बर 42 होता है, ये ब्लैक वारंट जेल सुपरिटेंडेंट को भेजा जाता है। उसके बाद सुपरिटेंडेंट वक़्त तय करके कोर्ट को बताता है।
  • डेथ वारंट जारी होने के बाद से ही कैदी से काम करवाना बंद कर दिया जाता है। उस पर 24 घंटे पैनी निगाह होती है। उसका दिन में 2 बार मेडिकल चेकअप भी होता है। कोर्ट से ब्लैक वारन्ट जारी होने के बाद उसे लाल रंग के एनवल्प या फ़ाइल में रखकर तिहाड़ जेल पहुंचाया जाता है जिसकी एंट्री की जाती है और कैदी और उसके परिवार को सूचित किया जाता है।
  • इसी बीच कैदी के डेढ़ गुना वजन की डमी से टेस्ट भी होता है, रस्सी और फांसी घर को चेक किया जाता है। जेल मैन्युअल में इस बात का कोई जिक्र नही है कि रस्सी नई ही होनी चाहिए, लेकिन ये जरूर लिखा है कि रस्सी कैसी होगी, कितनी लंबी होगी, इसमे डॉक्टर की सलाह भी ली जाती है कि कहां और कितनी लंबाई पर बांधा जाएगा। कुल मिलाकर रस्सी की जांच की जाती है।
  • 3 तरह के फट्टे होते हैं यानी टेबल, जिनपर फांसी दी जाती है, ये कैदियों के वजन के हिसाब से होता है।
  • आखिरी इच्छा जैसा कोई शब्द जेल मैन्युअल में नहीं लिखा है। ये एक ह्यूमन जेस्चर होता है, कैदी को जब उसके परिवार से मिलवाया जाता है तो कई बार फैमिली वाले भी ये सवाल कैदी से पूछते हैं। वैसे तो जो खाना बना होता है एक रात पहले वही दिया जाता है, लेकिन स्पेशल डिमांड पर खाना देना वो सुपरिटेंडेंट का निजी अधिकार है उसका जेल के कानून से कोई लेना देना नही ये ह्यूमन जेस्चर पर निर्भर है।
  • जिस दिन फांसी दी जाती है, उस दिन जेल मैन्युअल के हिसाब से कैदी को सूरज निकलते ही उठाया जाता है। साथ ही, सुपरिटेंडेंट उस दिन आई सारी मेल, डाक चेक करता है कहीं कोई नया फरमान तो नही आया फांसी को लेकर।

Death Warrant

Nirbhaya case: Why execution of four convicts is a challenge for Tihar jail

फांसी देने से पहले जेलर फांसी घर से लेकर अपने दफ्तर और अपने दफ्तर से लेकर फांसी घर तक दौड़ लगाता है आखिर वो ऐसा क्यों करता है?

असल में फांसी की सभी तैयारियों के बाद जेलर फांसी घर से भागकर अपने दफ्तर ये चैक करने आता है कि कही कोई सरकारी आदेश या रुकावट फांसी के खिलाफ तो नहीं आई है अगर कोई आदेश आता है तो वो फांसी रुकवाता है वर्ना फांसी घर जाकर जल्लाद को लीवर खींचने का हुक्म देता है और फांसी दे दी जाती है।

फांसी के दौरान जानें किसी भी गलती की जिम्मेदारी किसकी होती है?

  • ये चेक करने के बाद जेल का सुपरिटेंडेंट डीएम या उसके नुमाइंदे एडीएम, जल्लाद और मेडिकल टीम के साथ पहले ही फांसी घर मे मौजूद होता है। वहां सब चेक किया जाता है। मेडिकल टीम की मदद से रस्सी की लंबाई तय की जाती है। लेकिन, अगर कुछ भी गलती हुई फांसी के दौरान तो जिम्मेदारी सिर्फ सुपरिटेंडेंट की होगी।
  • वहीं दूसरी तरफ डिप्टी सुपरिटेंडेंट कैदी के सेल में उसके साथ मौजूद होगा, 6 गार्ड भी वहां रहेंगे। जैसा ही सुपरिटेंडेंट डिप्टी सुपरिटेंडेंट को कैदी को फांसी घर मे लाने का आदेश देगा, फिर सेल से फांसी घर तक मार्च होगा। कैदी के दोनों हाथ पीछे की तरह बांध दिए जाते हैं। उस वक़्त बाकी सभी कैदियों को उनकी सेल में बंद कर दिया जाएगा। जेल में सन्नाटा पसर जाता है। हथियारों से लैस गार्ड्स की संख्या हर सेल और फांसी घर के आसपास बढ़ा दी जाती है। मार्च के दौरान डिप्टी सुपरिटेंडेंट सबसे आगे चलता है, कैदी के आगे और पीछे दो-दो गार्ड होते हैं, बाकी दो गार्ड उसके दोनों हाथ पकड़ कर चलते हैं। 
  • फांसी घर के बाहर कैदी को रोका जाता है उसे काले रंग का नकाब पहनाया जाता है, ताकि फांसी घर के अंदर का कोई दर्शय वो देख न पाए, यानी डरे नही घबराए नहीं, ये जेल के कानून का हिस्सा है।
  • जैसे ही कैदी को फांसी के तख्ते पर खड़ा किया जाता है जल्लाद उसके दोनों पैर रस्सी से बांध देता हैं। जल्लाद कैदी के गले मे फांसी का फंदा डालता है, पहले वो loose रखा जाता है, उसके बाद मेडिकल टीम रस्सी चेक करती है, सब कुछ हो जाने के बाद जल्लाद और कैदी के अलावा फांसी के तख्ते पर मौजूद सभी को नीचे आने के आदेश दिए जाते हैं। जल्लाद फांसी के फंदे को कस्ता है और लीवर खींच देता है।
  • करीब आधे घंटे तक कैदी को फांसी पर लटकाया जाता है, फिर मेडिकल टीम जब तय कर लेती है कि मर चुका है, तो फिर उसका डेथ सर्टिफिकेट जारी कर सुपरिटेंडेंट को देती है। जिसे जेल की तरफ से ब्लैक वारंट के साथ अटैच कर वापस कोर्ट भेज दिया जाता है।
  • जेल मैन्युअल के हिसाब से बॉडी पूरे सम्मान के साथ कैदी के परिवार वालों तक एम्बुलेंस से भिजवाई जाती है। अगर सुपरिटेंडेंट को लगता है कि बॉडी परिवार को देने के बाद माहौल बिगड़ सकता है तो वो उसके हैंडओवर करने के लिए बाध्य नहीं है। जेल में अंतिम संस्कार कर सकते हैं।

हालांकि दोषियों के वकील हर वो चाल चल रहे है जिससे सजा को लटकाया जा सके, हालांकि राष्ट्पति की मर्सी के अलावा अभी कैदियों पर क्यूरेटिव पिटिशन का भी रास्ता है लेकिन इन सबके लिए एक समय सीमा है, उम्मीद है जल्द ही इन सबका डेथ वारन्ट जारी हो सकता है।

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