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केंद्र ने अदालत से कहा- निर्भया मामले के दोषी और समय के हकदार नहीं, यह सजा को विलंब करने की सुनियोजित चाल

केंद्र ने रविवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि निर्भया मामले में फांसी की सजा पाए चार दोषी अब और समय के ‘‘हकदार नहीं हैं।’’

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: February 03, 2020 7:06 IST
Nirbhaya Case- India TV Hindi
Nirbhaya Case

नयी दिल्ली: केंद्र ने रविवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि निर्भया मामले में फांसी की सजा पाए चार दोषी अब और समय के ‘‘हकदार नहीं हैं।’’ केंद्र ने साथ ही हैदराबाद की पशु चिकित्सक के सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले का उल्लेख किया जिसमें चारों आरोपी कथित तौर पर पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे और कहा कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता और मौत की सजा को तामील कराने की उसकी शक्ति दांव पर है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र और दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जिन्होंने 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले के दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक लगाने के निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करने का अनुरोध किया है। 

मेहता ने कहा कि मामले के दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल पर विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं और ‘‘देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं।’’ न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने केंद्र और दिल्ली सरकार की संयुक्त अर्जी पर तीन घंटे की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस दौरान दोषी मुकेश कुमार का प्रतिनिधित्व कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेक्का जॉन ने दलील दी कि चूंकि उन्हें एक ही आदेश के जरिए मौत की सजा सुनाई गई है, इसलिए उन्हें एक साथ फांसी देनी होगी और उनकी सजा का अलग-अलग क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता। जॉन ने कहा, ‘‘मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने प्रक्रिया विलंबित की, मैं बहुत खराब व्यक्ति हूं, मैंने एक घोर अपराध किया है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती, इसके बावजूद मैं संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) की हकदार हूं।’’ 

मेहता ने दलील दी कि दोषी पवन गुप्ता का सुधारात्मक या दया याचिका दायर नहीं करने का कदम सुनियोजित है। कानून अधिकारी ने कहा कि निचली अदालत द्वारा नियमों की व्याख्या के तहत यदि पवन गुप्ता दया याचिका दायर नहीं करने का फैसला करता है तो किसी को भी फांसी नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, ‘‘दोषियों द्वारा प्रक्रिया को विलंबित करने की सुनियोजित चाल चली जा रही है जिससे निचली अदालत द्वारा कानून के तहत सुनायी गई उस सजा के अमल पर देर करायी जा सके जिसकी दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुष्टि की थी और जिसे उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।’’ सॉलिसिटर जनरल ने छह दिसम्बर 2019 के हैदराबाद गैंगरेप और हत्या मामले का उल्लेख किया जिसमें चार आरोपी पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में मारे गए थे। उन्होंने कहा कि वहां जो हुआ वह चौंकाने वाला था लेकिन लोगों ने उस पर खुशी जाहिर की थी। 

उन्होंने कहा कि इसका बहुत खराब प्रभाव सामने आया संस्थान (न्यायपालिका) की विश्वसनीयता और मौत की सजा तामील कराने की उसकी अपनी शक्ति दांव पर है। उच्चतम न्यायालय ने कथित मुठभेड़ की जांच के लिए शीर्ष अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में तीन सदस्यीय आयोग गठित किया था। पुलिस ने दावा किया था कि हैदराबाद मामले में चारों आरोपी तब ‘‘जवाबी’’ कार्रवाई में मारे गए थे जब दो आरोपियों ने पुलिस के हथियार छीनकर उन पर गोली चला दी थी और उस स्थल से फरार होने का प्रयास किया था जहां उन्हें जांच के तहत ले जाया गया था। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने हालांकि पुलिस के दावे पर सवाल उठाया था लेकिन लोगों के एक वर्ग ने उसे उचित बताया था। मेहता ने कहा कि निर्भया मामले के दोषी न्यायिक मशीनरी से खेल रहे हैं और देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। 

सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से कहा, ‘‘कानून के तहत मिली सजा के अमल पर विलंब करने की एक सुनियोजित चाल है।’’ मुकेश और विनय शर्मा की दया याचिकाएं राष्ट्रपति ने खारिज कर दी हैं। पवन ने अभी अर्जी दायर नहीं की है। अक्षय सिंह की दया याचिका शनिवार को दायर की गई थी और यह अभी लंबित है। दोषियों अक्षय सिंह (31), विनय शर्मा (26) और पवन गुप्ता (25) की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ए पी सिंह ने केंद्र की उस अर्जी का विरोध किया जिसमें उसने मौत की सजा के अमल पर रोक को दरकिनार करने का अनुरोध किया है। जॉन ने केंद्र की अर्जी पर प्रारंभिक आपत्ति दर्ज की और कहा कि यह स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। उन्होंने दलील दी कि केंद्र मामले की सुनवायी में कभी पक्षकार नहीं था, सरकार दोषियों पर विलंब का आरोप लगा रही है जबकि वह खुद दो दिन पहले जागी है। 

उन्होंने कहा, ‘‘वे पीड़िता के माता- पिता थे जिन्होंने दोषियों के खिलाफ मौत का वारंट जारी कराने के लिए निचली अदालत का रुख किया था। किसी भी समय केंद्र सरकार या राज्य सरकार ने मृत्यु वारंट तुरंत जारी करने के लिए निचली अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया।’’ जॉन ने उच्च न्यायालय से यह भी कहा कि केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका देकर यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया है कि क्या सह-दोषियों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है और यह याचिका शीर्ष न्यायालय में लंबित है। मेहता ने कहा कि सात वर्ष बीत चुके हैं लेकिन दोषी अभी भी सरकारी मशीनरी और न्यायिक मशीनरी से खेल रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि इन दोषियों द्वारा किया गया अपराध इतना वीभत्स था कि उससे देश का अंतःकरण हिल गया था। उन्होंने कहा कि निचली अदालत द्वारा एक साझा फैसला सुनाया गया था कि उन्हें मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाया जाए और दोषियों को आखिरी सांस तक उन्हें उपलब्ध उपायों का इस्तेमाल करने का अधिकार है। जॉन ने कहा कि वह दिन दूर नहीं जब फांसी होगी लेकिन किसी को भी प्रक्रिया में बाधा नहीं उत्पन्न करनी चाहिए क्योंकि यह किसी व्यक्ति के जीवन का सवाल है। उन्होंने दलील दी कि उच्चतम न्यायालय ने कभी नहीं कहा कि दोषियों ने प्रक्रिया विलंबित की और उनकी सुधारात्मक याचिका के साथ ही राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका गुणदोष के आधार पर खारिज की गई थीं, विलंब के चलते नहीं। 

23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा से 16 दिसम्बर 2012 की रात में दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में छह व्यक्तियों द्वारा सामूहिक बलात्कार और बर्बरता की गई थी। उसे बाद में बस से नीचे फेंक दिया गया। बाद में छात्रा को निर्भया नाम दिया गया था। निर्भया ने 29 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था। मामले के छह आरोपियों में से एक राम सिंह ने तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी। आरोपियों में एक किशोर भी शामिल था जिसे एक किशोर न्याय बोर्ड ने दोषी ठहराया था और उसे तीन वर्ष बाद सुधार गृह से रिहा कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने 2017 के अपने फैसले में दोषियों को दिल्ली उच्च न्यायालय और निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा बरकरार रखी थी।

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