नई दिल्ली। निर्भया केस में दोषी मुकेश की दया याचिका दिल्ली के उप राज्यपाल ने खारिज कर गृह मंत्रालय को भेजा। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने मुकेश कुमार की ओर से दाखिल दया याचिका खारिज करने की सिफारिश की है। उपराज्यपाल अनिल बैजल ने याचिका को केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजा है।
बता दें कि निर्भया गैंगरेप और मर्डन केस में सजा का ऐलान हो चुका है लेकिन दोषियों की ओर से लगातार याचिकाएं दायर की जा रही हैं। निर्भया के दोषियों में से एक मुकेश की डेथ वारंट पर स्टे लगाने की मांग वाली याचिका पर पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुकेश की तरफ से वृंदा ग्रोवर पक्ष रखते हुए कहा कि हमारा ये कहना नहीं है कि कोर्ट का डेथ वारंट जारी करने का आदेश गलत था, हमारा ये कहना है कि अब परिस्थिति बदली है। वृंदा ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2 बजे क्यूरेटिव याचिका खारिज करने के 1 घंटे बाद यानी 3 बजे हमने दया याचिका दाखिल कर दी थी। हमारी याचिका में दो मांग की गई हैं एक डेथ वारंट पर रोक लगाई जाए और वारंट को रद्द किया जाए ।
वंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट के शत्रुघ्न चौहान के फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि कोर्ट के फैसले के मुताबिक 22 जनवरी को फांसी नही दी जा सकती क्योंकि दया याचिका अभी लंबित है। ग्रोवर ने कहा, हम इसलिए निचली अदालत में आये है कि डेथ वारंट पर रोक लगाई जाए। क्यूरेटिव याचिका इस लिए दाखिल नहीं कर पाए क्योंकि कुछ दस्तावेज़ हमारे पास नही थे। सुप्रीम कोर्ट ने कही भी अपने फैसले में नही कहा कि क्यूरेटिव याचिका को देरी से दाखिल करने के आधार पर खारिज किया गया है। वृंदा ग्रोवर ने दिल्ली सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए, ये राज्य सरकार की भूमिका थी कि वो कोर्ट को बताए।
ग्रोवर ने कहा कि जब तक राष्ट्रपति की तरफ से मर्सी पिटीशन पर कोई फैसला नहीं आता तब तक दोषी को फांसी नहीं दी जा सकती। ग्रोवर ने कहा कि दोषी अभी उनकी(तिहाड़ जेल) कस्टडी में है, उनकी जिम्मेदारी नहींं बनती? जेल ऑथोरिटी को इसे लेकर कोर्ट को बताना चाहिये था। इन लोगों ने मेरे ऊपर छोड़ दिया कि मैं कोर्ट में आऊं। निर्भया के माता-पिता के वकील जितेंद्र झा ने मुकेश की याचिका का विरोध किया, कहा मुकेश की याचिका सुनवाई लायक नहीं है।
ग्रोवर ने कहा कि मैं जानती हूँ कि जो हुआ उसका दुख है, मैं उस दुख को समझती हूँ लेकिन भावनाएं कानून की जगह नहीं ले सकती। जब एक दोषी जेल अथॉरिटीज़ की कस्टडी में होता है, तो अथॉरिटीज़ इस बात का चुनाव नहीं कर सकते कि कौन से कानून का इस्तेमाल करना है और किसका नहीं।
ग्रोवर ने कहा, याचिकाकर्ता को मर्सी पिटीशन की रिजेक्शन की कॉपी मिलने का पूरा अधिकार है। दिल्ली जेल मैनुअल के नियमों के मुताबिक कैदी अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। 22 तारीख को फांसी नहीं दी जा सकती जब तक मर्सी पिटीशन लंबित है। 22 तारीख के वॉरन्ट को आप जेल अथॉरिटीज और उनकी समझ पर नहीं छोड़ सकते। राष्ट्रपति द्वारा मर्सी पिटीशन खारिज करने के तरीके की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। जेल अथॉरिटीज पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वे किसके आदेश पर काम कर रहे हैं। ग्रोवर ने कहा कि मुकेश की मर्सी पिटीशन फाइल करने के लिए जेल अथॉरिटीज से मैंनें दस्तावेजों की मांग की थी, लेकिन उन्होंने मेरी एप्लिकेशन का जवाब भी नहीं दिया।
बता दें कि, दक्षिण दिल्ली में 16 और 17 दिसंबर, 2012 की रात में चलती बस में छह दरिंदों ने 23 वर्षीय छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद बुरी तरह से जख्मी हालत में पीड़िता को सड़क पर फेंक दिया था। इस छात्रा की बाद में 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर के एक अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी।