नई दिल्ली: देश में इस समय मीडिया की भूमिका को लेकर बड़ी बहस चल रही है। समाज के कुछ लोगों का मानना है कि कई मीडिया चैनल खबरों के नाम पर कुछ सीमाओं का उल्लंघन कर रहे हैं। हाल के दिनों में घटित कुछ घटनाओं के बाद यह विमर्श और तेज हो गया है। इस बीच न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) के चेयरमैन रजत शर्मा ने कहा कि एडवर्टाइजर्स को उन चैनलों के बीच अंतर करना चाहिए जो गैर-जरूरी रूप से आक्रामकता दिखाते हैं और न्यूज के साथ गालियों और झगड़े को जगह देते हैं।
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर इन चीफ रजत शर्मा ने वेबसाइट BestMediaInfo.com को दिए एक इंटरव्यू में आगे कहा कि विज्ञापनदाताओं को ये फर्क करना चाहिए कुछ चैनल अटेंशन पाने के लिए हाई वोल्टेज ड्रामा करते हैं और निजता का उल्लंघन करते हैं। रजत शर्मा के इंटरव्यू के प्रमुख अंश-
सवाल: हाल ही में NBA ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में मांग की है कि उसे ज्यादा शक्ति मिलनी चाहिए ताकि ऐसे चैनल जो एनबीए के सदस्य नहीं हैं उन पर भी लगाम लगाई जा सके। ये कितना फायदेमंद हो सकता है?
जवाब: हम NBA के लिए ज्यादा शक्ति नहीं मांग रहे, हम चाहते हैं कि सभी न्यूज चैनल NBSA (न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स एसोसिएशन) द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस का पालन करें। NBA और NBSA 2 अलग निकाय हैं। NBSA के पास न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के लिए स्पष्ट और सख्त आचार संहिता है। बीते कई सालों में एनबीएसए ने न्यूज चैनलों को बेहतर बनाने में मदद की है। NBSA अब विषैले कंटेंट को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन समस्या ये है कि जो चैनल स्कैनर में हैं वे NBA के सदस्य ही नहीं हैं। वे NBSA के दायरे में नहीं आते हैं। हम उन्हें NBA का सदस्य बनने के लिए भी नहीं कह रहे हैं। हम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से बस ये मांग कर रहे हैं कि सभी न्यूज चैनलों के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वो NBSA की गाइडलाइंस का पालन करें।
सवाल: आपने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि कुछ चैनल पूरी इंडस्ट्री का नाम खराब कर रहे हैं, लेकिन क्या ऐसा नहीं है कि सभी चैनल आखिरकार उन 'कुछ चैनलों' से कम्प्टिशन के जाल में फंस रहे हैं?
जवाब: NBA और गैर-एनबीए सदस्य चैनलों के बीच बहुत ही स्पष्ट फर्क है। निश्चत तौर पर NBA चैनलों को कंपीट करना है लेकिन वो NBSA की गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं कर सकते। आचार संहिता का पालन करना आसान नहीं है, इसलिए NBA चैनल्स को हमेशा अलर्ट रहने की जरूरत है, लेकिन आप उन न्यूज चैनलों के बारे में क्या करते हैं जो गलती करते हैं? जज द्वारा माफी मांगने के लिए कहा जाता है, लेकिन वे आदेशों का पालन करने से इनकार करते हैं। फिर वे NBA से बाहर निकलते हैं। इसलिए हम कह रहे हैं कि ऐसे चैनल अपने ग्रुप्स, संगठन या गैंग का गठन कर सकते हैं, लेकिन NBSA कोड का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य होना चाहिए।
सवाल: क्या NBA सदस्यों को विज्ञापनदाताओं के लिए सुरक्षित माहौल नहीं देना चाहिए?
जवाब: विज्ञापनदाताओं को उन चैनलों के बीच अंतर करना चाहिए जो गैर-जरूरी रूप से आक्रामकता दिखाते हैं और खबरों के साथ गालियां और झगड़े को जगह देते हैं। विज्ञापनदाताओं को ये फर्क करना चाहिए कुछ चैनल अटेंशन पाने के लिए हाई वोल्टेज ड्रामा करते हैं और निजता का उल्लंघन करते हैं। हमने रिपोर्टर्स के वीडियोज देखे हैं जो गवाहों को परेशान करते हैं, एजेंसियों द्वारा पूछताछ के लिए बुलाए गए लोगों के पीछे भागते हैं, यहां तक कि अपशब्दों का इस्तेमाल भी करते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ऐसा कौन कर रहा है और हमने दुनियाभर में देखा है ऐसे 'हेट मॉन्गर्स' को सम्मानित विज्ञापनदाताओं ने सपोर्ट नहीं किया है।
सवाल: क्या NBA को विज्ञापनदाताओं की भावनाओं का ध्यान नहीं रखना चाहिए?
जवाब: एनबीए न केवल विज्ञापनदाताओं की भावनाओं का सम्मान करता है बल्कि उनसे ये भी अपील करता है कि नैतिकता और अनैतिकता के बीच अंतर करें। हम जानते हैं कि हाल ही में जिस तरह से खबरों कवरेज की गई है उससे पूरी इंडस्ट्री की छवि को नुकसान पहुंचा है। कुछ चैनलों ने न्यूज के काम पर ड्रामा दिखाया है, जो न सिर्फ इंडस्ट्री के लिए गलत है बल्कि समाज के लिए भी अच्छा नहीं है। न्यूज चैनल और एडवर्टाइजर्स दोनों की देश के प्रति जिम्मेदारी है। हम कुछ लोगों को यह इजाजत नहीं दे सकते कि वे लोगों को निशाना बनाएं, हर दिन जहर उगलते रहें और बचे भी रहें।
सवाल: कुछ NBA सदस्य चैनल भी कारों के पीछे दौड़ते हुए देखे गए हैं और स्टूडियो को हाई वोल्टेज ड्रामे में उन्होंने बदल दिया है, ये कैसे सही है?
जवाब: अगर कोई भी NBA सदस्य चैनल इस तरह की प्रोग्रामिंग में शामिल है तो मुझे इस बात में जरा भी शक नहीं कि उन्हें NBSA का सामना करना पड़ेगा।
सवाल: एक वक्त था जब विवाद की स्थिति में धर्म का नाम नहीं लिया जाता था, लेकिन अब खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है। आरोपी जैसे लीगल टर्म भूल गए हैं, मौत को हत्या कहा जा रहा है। क्या इन सबके अब कोई मायने नहीं रह गए हैं?
जवाब: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते हम देश के संविधान से बंधे हैं। NBA अपने किसी सदस्य को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की इजाजत नहीं देता है और न ही दो समुदायों के बीच दूरियां पैदा करने की अनुमति देता है। पत्रकार आचार संहिता के दायरे में रहते हुए किसी मामले की जांच कर सकते हैं। NBSA की गाइडलाइंस न्यूज चैनलों को मीडिया ट्रायल की परमिशन नहीं देती हैं और न ही मौत को हत्या कहने की इजाजत देती हैं। न्यूज चैनल के लिए काम करने से कानून के उल्लंघन का लाइसेंस नहीं मिलता है।