नई दिल्ली: पनामा पेपर्स के नए खुलासे में बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन पर यह आरोप लगाया गया है कि उन्होंने टेलीफोन कांफ्रेंसिंग के जरिए दो विदेशी कंपनियों की बोर्ड बैठक में हिस्सा लिया था। अमिताभ बच्चन ने इस पर कहा कि उनके नाम का 'दुरुपयोग' किया गया है और उन्होंने किसी भी प्रकार की गलती नहीं की है। इंडियन एक्सप्रेस में गुरुवार को प्रकाशित ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि सी बल्क शिपिंग और ट्रैंप शिपिंग ने 12 दिसंबर 1994 को अलग-अलग डल्लाह अल्बरका इनवेस्टमेंट कंपनी से 17.5 करोड़ डॉलर ऋण प्रस्ताव को पारित किया।
रिपोर्ट में कहा गया है, "दोनों ही कंपनियों के फैसलों में बताया गया है कि बच्चन ने टेलीफोन कांफ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया था। उसी दिन जारी की गई सर्टिफिकेट ऑफ इनकंबेंसी में दोनों कंपनियों ने बच्चन का उल्लेख निदेशक के रूप में किया है। बच्चन तथा अन्य अधिकारियों सहित दोनों कंपनियों के निदेशक समान थे।"
इसके जवाब में अमिताभ बच्चन के कार्यालय से सरकार को एक जवाब भेजा गया है और इसे उनके ट्विटर खाते पर भी पोस्ट किया गया है। पोस्ट में कहा गया है, "पनामा खुलासे के बारे में मीडिया मुझसे लगातार सवाल पूछ रही है। मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि वे भारत सरकार पूछें, जहां एक कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में मैंने पहले ही (जवाब) भेज दिए हैं और आगे भी भेजता रहूंगा।"
पोस्ट के मुताबिक, "इस मामले में मेरे नाम का दुरुपयोग हुआ है और वैसे भी रिपोर्ट में मेरे द्वारा किए गए किसी अवैध कार्य के बारे में नहीं कहा गया है।" मोजेक फोंसेका के दस्तावेजों के आधार पर इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि जर्सी की कारपोरेट सेवा प्रदाता कंपनी सिटी मैनेजमेंट (अब मिनरवा ट्रस्ट) के उमेश सहाय इन चार जहाजरानी कंपनियों के संस्थापक निदेशकों में एक थे और उन्होंने 1993 में अमिताभ बच्चन को निदेशक और प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्त किया था।
उन्होंने (सहाय) 12 दिसंबर 1994 के बोर्ड फैसले पर हस्ताक्षर भी किए हैं। अमिताभ बच्चन के जवाब पर टिप्पणी लेने के लिए उन्हें भेजे गए ईमेल या उन्हें किए गए फोन का उन्होंने जवाब नहीं दिया।अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ (आईसीआईजे) और 100 से अधिक वैश्विक मीडिया समूहों द्वारा किए गए खुलासे में बच्चन का नाम सामने आया है। यह खुलासा पनामा की कानून सेवा कंपनी मोजेक फोंसेका से लीक हुए लाखों दस्तावेजों के आधार पर किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर इस मामले की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय जांच दल का गठन किया गया है। इसमें वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक की विभिन्न एजेंसियों के सदस्यों को शामिल किया गया है। भारतीय अधिकारियों ने यह भी कहा है कि यह जरूरी नहीं है कि विदेश में काम करने वाले सभी फंड अवैध ही हों।