नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय द्वारा अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सर्वमान्य समाधान के लिए नियुक्त मध्यस्थता समिति की प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए एक हिंदू और एक मुस्लिम पक्षकार ने एक नया आवेदन दिया है। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ. एम. आई. कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली मध्यस्थता समिति के एक करीबी सूत्र ने बताया कि तीन सदस्यीय समिति को एक पत्र मिला है जिसमें मध्यस्थता प्रक्रिया को फिर से शुरू किये जाने की मांग की गई है।
इस मध्यस्थता समिति में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पाचू शामिल हैं। सूत्र ने बताया कि समिति ने निर्देश के लिए शीर्ष अदालत को इस पर एक रिपोर्ट भेजी है। सूत्र ने बताया, ‘‘समिति उच्चतम न्यायालय के निर्देश की प्रतीक्षा करेगी।’’ उन्होंने बताया कि दो पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने कहा है कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा शीर्ष अदालत में इस मामले में की जा रही सुनवाई को रोके बिना मध्यस्थता प्रक्रिया जारी रखी जा सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने के लिये आठ मार्च को शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित की थी। इस समिति को आठ सप्ताह के भीतर मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी करनी थी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के उस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपील दायर की गई है जिसमें विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया गया था। गौरतलब है कि छह दिसंबर 1992 को 16 वीं शताब्दी में मीर बाकी द्वारा निर्मित बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था।