धार/इंदौर (मप्र): नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को आज धार जाते समय पीथमपुर से गिरफ्तार कर लिया गया। इंदौर के एक निजी अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मेधा फिर से चिखल्दा गांव में धरना दे रहे सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों से मिलने धार जिले की ओर जा रही थी।
इंदौर रेंज के अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक अजय शर्मा ने बताया, हमने मेधा को गिरफ्तार कर लिया है, क्योंकि वह सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों से मिलने फिर जा रही थीं। उन्होंने कहा, हमने उन्हें कह दिया था कि इलाके में धारा 144 लागू होने के कारण वह वहां नहीं जा सकती, लेकिन फिर भी वह वहां जा रही थी। इसलिए हमने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
शर्मा ने बताया कि पुलिस ने मेधा को धार जिला जाते समय रास्ते में गिरफ्तार किया। उन्होंने कहा, हमने मेधा को कहा कि वह धारा 144 के प्रावधान का उल्लंघन न करने के लिए एक बांड भरे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद उनको गिरफ्तार करने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा था।
सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र के प्रभावितों के लिए उचित पुनर्वास की मांग को लेकर मध्यप्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठी नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर (62) और उनके अन्य साथियों को पुलिस ने 12वें दिन सात अगस्त को धरना स्थल से बलपूर्वक उठा दिया था और उसके बाद उसी रात को मेधा को इंदौर के बांबे अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया था।
तीन दिन तक इस अस्पताल में उनका इलाज किया गया और आज वहां से छुट्टी मिलने के बाद वह विस्थापितों से मिलने के लिए धरना स्थल पर फिर जा रही थीं, इसी दौरान उन्हें पीथमपुरा में गिरफ्तार किया गया।
गिरफ्तार होने से कुछ घंटे पहले अस्पताल से व्हील चेयर पर बाहर आयीं मेधा ने इंदौर में संवाददाताओं से कहा, अलग-अलग अस्पतालों में ड्रिप के जरिये हम अनशनकारियों के शरीर में दवाइयां पहुंचायी गयीं। लेकिन मैंने और 11 अन्य अनशनकारियों ने अब तक अन्न ग्रहण नहीं किया है। हमारी मांग है कि विस्थापितों के उचित पुनर्वास के इंतजाम पूरे होने तक उन्हें अपनी मूल बसाहटों में ही रहने दिया जाये और फिलहाल बांध के जलस्तर को नहीं बढ़ाया जाये।
मेधा ने आरोप लगाया कि प्रदेश की नर्मदा घाटी में पुनर्वास स्थलों का निर्माण अब तक पूरा नहीं हो सका है। ऐसे कई स्थानों पर पेयजल की सुविधा भी नहीं है। लेकिन प्रदेश सरकार हजारों परिवारों को अपने घर-बार छोड़कर ऐसे अधूरे पुनर्वास स्थलों में जाने के लिये कह रही है। यह स्थिति विस्थापितों को कतई मंजूर नहीं है और ज्यादातर विस्थापित अब भी घाटी में डटे हैं।