नारायण दत्त तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल जिले के बलूटी गांव में हुआ था। उनके पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे, जिन्होंने बाद में नौकरी छोड़कर असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। तिवारी ने हल्द्वानी के एमबी स्कूल, बरेली के ई.एम. हाई स्कूल और नैनीताल के सीआरएसटी हाई स्कूल से शुरुआती शिक्षा ग्रहण की।
राजनीति में जाने के संकेत उन्होंने बहुत पहले ही दे दिए थे। भारत छोड़ो आंदोलन के समय अंग्रेजों के खिलाफ पर्चे बांटने के आरोप में 14 दिसंबर 1942 को तिवारी को गिरफ्तार किया गया और नैनीताल जेल भेजा गया, जहां उनके पिता पहले से ही बंद थे।
15 महीने बाद 1944 में जेल से छूटने के बाद तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और वहां एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) में टॉप किया। यहीं से उन्होंने एल.एल.बी. की और 1947 में छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गए। 1947-49 तक वह अखिल भारतीय छात्र कांग्रेस के सचिव भी रहे।
88 साल की उम्र में की दूसरी शादी
1954 में उन्होंने सुशीला तिवारी से शादी की। इसके बाद 14 मई 2014 को 88 साल की उम्र में उन्होंने उज्जवला तिवारी से दोबारा शादी की, जिनसे उन्हें रोहित शेखर नाम का एक बेटा हुआ। रोहित शेखर को अपने माता-पिता की पहचान के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा डीएनए परीक्षण कराए जाने के बाद एनडी तिवारी ने रोहित शेखर को अपना जैविक बेटा होने का अधिकार दिया।
प्रजा समाजवादी पार्टी से जीते पहला चुनाव
आजादी के बाद उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए 1952 में पहली बार हुए चुनाव में प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर तिवारी नैनीताल से पहली बार विधायक बने। 1963 में उन्होंने भारतीय रार्ष्टीय कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली और 1965 में काशीपुर सीट से चुनाव जीते। चौधरी चरण सिंह की सरकार में वह वित्त और संसदीय कार्य मंत्री भी रहे। वह इंडियन यूथ कांग्रेस के पहले अध्यक्ष भी थे।
तीन बार बने यूपी के सीएम
एन.डी. तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पहली बार जनवरी 1976 से अप्रैल 1977 तक उन्होंने ये जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद अगस्त 1984 से सितंबर 1985 तक वह मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद जून 1988 से दिसंबर 1988 तक उन्हें फिर ये जिम्मेदारी मिली। 1980 में वे 7वीं लोकसभा के लिए चुने गए और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। 1985 से 1988 तक वह राज्य सभा के सदस्य रहे। इस दौरान उन्होंने 1986 से लेकर जुलाई 1987 तक विदेश मंत्री भी रहे। इसके बाद जून 1988 तक वह वित्त और वाणिज्य मंत्री रहे।
नहीं बन पाए पीएम
1990 में वह प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में मजबूत प्रत्याशी थे लेकिन पी.वी. नरसिम्हा राव ने उन्हें पीछे छोड़ दिया। इसके पीछे एक प्रमुख वजह उनका लोक सभा चुनाव में मात्र 800 वोटों से हार जाना रहा। 1994 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) नाम से अपनी पार्टी बनाई। दो साल बाद जब सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं तो वो वापस कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में वो 11वीं लोक सभा के लिए और 1999 में 13वीं लोक सभा के लिए चुने गए।
2002 से 2007 तक एन.डी. तिवारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। 19 अगस्त 2007 को उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया। राजभवन में सेक्स स्कैंडल में फंसने के बाद उन्होंने 26 दिसंबर 2009 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह देहरादून में आकर रहने लगे। जनवरी 2017 में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में नारायण दत्त तिवारी ने भाजपा को अपना समर्थन देने की घोषणा की।