मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने अपनी पत्नी को एक साथ तीन तलाक देने के आरोपी को यह कहते हुए मंगलवार को अग्रिम जमानत दे दी कि इस चरण में अदालत को मामले पर कोई फैसला नहीं करना है। पालघर जिले के वसई इलाके के रहने वाले इंतेखाब आलम मुंशी की अग्रिम जमानत की याचिका को पालघर की सत्र अदालत ने 21 नवंबर को खारिज कर दिया था। इसके बाद उसने पिछले महीने उच्च न्यायालय का रूख किया था।
सत्र अदालत ने इस आधार पर उसकी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज की थी कि जांच अधिकारी को मुंशी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसने इस साल के शुरू में तलाक की जो कार्यवाही शुरू की है, वो एक साथ तीन तलाक देने के समतुल्य है या नहीं। एक साथ तीन तलाक देने को कानून के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है।
बहरहाल, उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति पीडी नाईक की एकल पीठ ने मंगलवार को कहा कि अग्रिम जमानत पर कार्यवाही के इस चरण में अदालत को यह फैसला नहीं करना है कि क्या मुंशी की तलाक की कार्यवाही एक साथ तीन देने के समान है या नहीं। गिरफ्तारी से संरक्षण देने का अनुरोध करने वाली मुंशी की याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति नाईक ने कहा, ‘‘ यह वैवाहिक विवाद का मामला है। याचिकाकर्ता (मुंशी) को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस स्तर पर ज्यादातर जांच दस्तावेजी तथ्यों पर निर्भर होती है।’’
इस मामले में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार मुंशी ने अपनी पत्नी से 1998 में शादी की थी। उसकी पत्नी 22 सितंबर को जब अपने माता-पिता के घर पर थी तो मुंशी ने उन्हें तलाक का नोटिस भेजा। नोटिस पर मुंशी, उसके वकील और दो गवाहों के दस्ताखत थे। इस नोटिस में कहा गया था कि उसे मेल-मिलाप की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है, इसलिए वह शादी खत्म कर रहा है। उसकी पत्नी ने दावा किया कि नोटिस, एक साथ तीन तलाक देने या ‘तलाक-ए-बिद्दत’ के समान है, जिसे अध्यादेश के जरिए प्रतिबंधित किया गया है।
मुंशी ने निचली अदालत और उच्च न्यायालय में दावा किया है कि उसने तलाक-ए-बिद्दत के तहत तलाक की कार्यवाही शुरू नहीं की है और जुलाई से सितंबर के बीच ‘तलाक-ए-अहसन’ के तहत पत्नी को तीन नोटिस भेजे हैं।