बेंगलुरु। राजनीतिक परिदृश्य में एक रिक्ति पैदाकर दुनिया से चल बसीं पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 1999 में जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था तब से उनका कर्नाटक के साथ एक गहरा नाता बन गया था।
वैसे तो तब कांग्रेस के इस पारंपरिक गढ़ में सुषमा स्वराज 50,000 से अधिक मतों के अंतर से चुनाव हार गयी थीं लेकिन उन्होंने हैदराबाद-कर्नाटक के इस पिछड़े क्षेत्र में आना-जाना जारी रखा और वहां कई दोस्त बनाए। वह अगले एक दशक तक हर साल वाराहलक्ष्मी व्रत मनाने के लिए बल्लारी (पूर्व में बेल्लारी) आती रहीं और वहां मशहूर चिकित्सक डॉ. बी के श्रीनिवास मूर्ति के निवास पर पूजा करती थीं।
उन्होंने इतनी अच्छी तरह कन्नड़ भाषा सीखी कि वह उसी भाषा में जनसभाओं को संबोधित करतीं और लोगों का दिल जीत लेतीं। बाद के सालों में जब भी वह कर्नाटक के नेताओं से मिलीं उन्होंने कन्नड़ में बोलने का प्रयास किया। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने उनके पति को भेजे शोक संदेश में लिखा है, ‘‘यह एक तथ्य है कि उनका कर्नाटक और खासकर बल्लारी से व्यक्तिगत रिश्ता बन गया था और यही वजह है कि उन्हें अक्सर बल्लारी की मां कहा जाता है।’’
उन्हें प्रखर वक्ता, कुशल प्रशासक और असाधारण सांसद बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जब भी मैंने उनसे किसी सार्वजनिक काम के लिए कहा तो वह मुझसे बात करतीं और कहती है कि लीजिए काम हो गया।’’
दो दशक पहले हुए सुषमा स्वराज और सोनिया गांधी के बीच चुनावी मुकाबला ने पूरे देश का ध्यान आकृष्ट किया था और भाजपा को बल्लारी एवं आसपास के जिलों में जनाधार मजबूत करने में बहुत मदद पहुंचायी।
नई दिल्ली में सुषमा स्वराज को श्रद्धांजलि देने के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने कहा कि 1999 के चुनाव प्रचार के दौरान वह और सुषमा स्वराज एक ही होटल में ठहरे थे। उन्होंने बहुत जल्दी कन्नड़ सीखी और फिर उसी भाषा में लोगों से बात करती थीं। बल्लारी के रेड्डी बंधुओं-करुणाकर और सोमशेखर तथा उनके करीबी बी श्रीरामुलू ने स्वराज को अपनी ‘मां’ बताया था और वे भाजपा में आने के बाद काफी आगे बढ़े। हालांकि, खनन घोटाला सामने आने के बाद सुषमा ने उनसे दूरी बना ली।