Friday, November 22, 2024
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हम सत्य जानने वाले ऋषियों के वंशज, हमारा धर्म बिना पूजा बदले अच्छा मनुष्य बनाता है- मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया उसी को पीटती है जो दुर्बल है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि दुर्बलता ही पाप है। बलशाली का मतलब है संगठित होना। अकेला व्यक्ति बलशाली नहीं हो सकता है। कलयुग में संगठन ही शक्ति मानी जाती है। हम सभी को साथ लेकर चलेंगे, हमें किसी को बदलने की आवश्यकता नहीं है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: November 20, 2021 7:16 IST
Mohan Bhagwat Big statement on Hinduism and religious conversion हम सत्य जानने वाले ऋषियों के वंशज, - India TV Hindi
Image Source : PTI हम सत्य जानने वाले ऋषियों के वंशज, हमारा धर्म बिना पूजा बदले अच्छा मनुष्य बनाता है- मोहन भागवत

Highlights

  • हमारे देश का सुर एक है और यह हमारी ताकत भी है- मोहन भागवत
  • भारत ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा- मोहन भागवत
  • 'हमने कभी किसी को बदला नहीं, जो जिसके पास था उसे उसके पास ही रहने दिया'

बिलासपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू धर्म और मतांतरण को लेकर बड़ा बयान दिया है।  मोहन भागवत ने इशारों ही इशारों में धर्म परिवर्तन पर जोर दे रहे अन्य धर्मों के लोगों पर निशाना साधा है। उन्होंने छत्तीसगढ़ में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि हम सत्य को जानने वाले ऋषियों के वंशज है। हमारा धर्म बिना किसी की पूजा बदले, बिना किसी की प्रांत भाषा बदले अच्छा मनुष्य बनाता है।

उन्होंने कहा, "हम उस सत्य को जानने वाले ऋषियों के वंशज हैं। हम संपूर्ण दुनिया को अपना कुटुंब मानने वाले लोग हैं। हमको सारी दुनिया को उस सत्य को देना है अपने व्यवहार से। हम फिर से देश-विदेश जाएंगे सारी दुनिया में जाएंगे और तबतक अगर विज्ञान कहता है कि हम चंद्रमा पर जाएंगे, मंगल पर जाएंगे तो उनके पीछे-पीछे हम वहां भी जाएंगे।" उन्होंने कहा, "और सबका खोया हुआ व्यवहार का संतुलन वापस देने वाला धर्म यही है, जो पर्यावरण के साथ ठीक रहना सिखाता है, जो पंथ-पूजा की, जात-पात की, देश की, भाषाओं की विविधता होने के बाद भी मिलजुलकर रहना सिखाता है।"

संघ प्रमुख ने आगे कहा, "जो बिना किसी की पूजा बदले, बिना किसी की प्रांत-भाषा बदले उसको अच्छा मनुष्य  बनाता है, जो सबको अपना मानता है किसी को पराया नहीं मानता, यहां तक कि उसको न मानने वाले को वो पराया नहीं मानता, ऐसा जो हमारा धर्म है, जिसको आजकल लोग हिंदू धर्म कहते हैं हमको सारी दुनिया में देना है। मतांतरण नहीं करना है। ये तरीका सिखाना है, ये तरीका पूजा का तरीका नहीं है, ये जीने का तरीका है। सारी दुनिया को उसको देने के लिए हमारा जन्म भारतवर्ष में हुआ है। हम उन पूर्वजों के वंशज हैं।"

'विश्व गुरु भारत के निर्माण के लिए हम सभी को मिलकर साथ चलना होगा'

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि विश्व गुरु भारत के निर्माण के लिए हम सभी को मिलकर साथ चलना होगा। भागवत ने शुक्रवार को मुंगेली जिले के मदकू द्वीप में घोष शिविर के समापन समारोह में कहा, "हम सभी को अपने पूर्वजों के उपदेशों को स्मरण करना है। हमारे पूर्वजों के पुण्य का स्मरण करा देने वाले इस क्षेत्र में संकल्प लेना है कि संपूर्ण विश्व को शांति सुख प्रदान करा देने वाला विश्वगुरु भारत गढ़ने के लिए हम सुर में सुर मिलाकर एक ताल में कदम से कदम मिलाकर सौहार्द और समन्वय के साथ आगे बढ़ेंगे।"

मुंगेली जिले से होकर बहने वाली शिवनाथ नदी में स्थित मदकू द्वीप में 16 नवंबर से 19 नवंबर तक घोष शिविर का आयोजन किया गया था। शुक्रवार को इसके समापन के अवसर पर घोष प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें RSS प्रमुख ने हिस्सा लिया था। उन्होंने इस अवसर पर कहा, "सत्यमेव जयते नानृतम्। सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं। झूठ कितनी भी कोशिश कर लेकिन झूठ कभी विजयी नहीं होता है।"

भागवत ने कहा, "यहां विविधता में एकता है और एकता में विविधता है। भारत ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा। पूर्व में हमारे पूर्वज यहां से पूरी दुनिया में गए और उन्होंने वहां के देशों को अपना धर्म (सत्य) दिया। लेकिन हमने कभी किसी को बदला नहीं, जो जिसके पास था उसे उसके पास ही रहने दिया। हमने उन्हें ज्ञान दिया, विज्ञान दिया, गणित और आयुर्वेद दिया तथा उन्हें सभ्यता सिखाई। इसलिए हमारे साथ लड़ने वाले चीन के लोग भी यह कहते हुए नहीं सकुचाते कि भारत ने 2000 वर्ष पूर्व ही चीन पर अपनी संस्कृति का प्रभाव जमाया था, क्योंकि उस प्रभाव की याद ही सुखद है दुखद नहीं है।"

उन्होंने कहा कि दुनिया उसी को पीटती है जो दुर्बल है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि दुर्बलता ही पाप है। बलशाली का मतलब है संगठित होना। अकेला व्यक्ति बलशाली नहीं हो सकता है। कलयुग में संगठन ही शक्ति मानी जाती है। हम सभी को साथ लेकर चलेंगे, हमें किसी को बदलने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने घोष प्रदर्शन को लेकर कहा, "आपने अभी देखा होगा कि इस शिविर में सभी अलग-अलग वाद्य यंत्र बजा रहे थे। वाद्य यंत्र बजाने वाले लोग भी अलग थे। लेकिन सभी का सुर मिल रहा था। इस सुर ने हमें बांधकर रखा है। इसी तरह हम अलग अलग भाषा, अलग अलग प्रांत से हैं, लेकिन हमारा मूल एक ही है। यह हमारे देश का सुर है और यह हमारी ताकत भी है। और यदि कोई उस सुर को बिगाड़ने का प्रयास करे तो देश का एक ताल है, वह ताल उसको ठीक कर देता है।"

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