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महाबलीपुरम को सिर्फ एक आने में खरीदा था ASI ने, यहीं मिलेंगे पीएम मोदी और शी जिनपिंग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग महाबलीपुरम में मिलने जा रहे हैं। सवाल है कि आखिर इस मुलाकात के लिए महाबलीपुरम को ही क्यों चुना गया?

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: October 11, 2019 11:07 IST
महाबलीपुरम को सिर्फ एक आने में खरीदा था ASI ने, यहीं मिलेंगे पीएम मोदी और शी जिनपिंग- India TV Hindi
महाबलीपुरम को सिर्फ एक आने में खरीदा था ASI ने, यहीं मिलेंगे पीएम मोदी और शी जिनपिंग

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग महाबलीपुरम में मिलने जा रहे हैं। सवाल है कि आखिर इस मुलाकात के लिए महाबलीपुरम को ही क्यों चुना गया? दरअसल, आज ऐतिहासिक धरोहरों वाले महाबलीपुरम शहर के दर्शन करवाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शी जिनपिंग को भारत और चीन की दोस्ती का इतिहास याद दिलाने वाले हैं। महाबलीपुरम अब दो महाशक्तिशाली देशों के महाबली नेताओं की मुलाकात का ऐतिहासिक गवाह बनने जा रहा है।

1500 साल पुरानी महान धरोहर महाबलीपुरम का निर्माण भी भारत के महाबली राजाओं ने करवाया था। महाबलीपुरम के अधिकांश निर्माण पल्लव राजा नरसिंवर्मन प्रथम के शासन काल में हुआ है। नरसिंहवर्मन का एक नाम मामल्ल भी था क्योंकि वो मल्ल युद्ध यानी कुश्ती लड़ने में माहिर थे। इन्होंने जिस जगह पर मंदिरों और रथों का निर्माण करवाया उसे मामल्लपुरम कहा गया और इसी मामल्लपुरम को आज दुनिया महाबलीपुरम के नाम से जानती है। 

अब यहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनौपचारिक मुलाकात होने जा रही है इसलिए अब पूरी दुनिया की निगाहें महाबलीपुरम की तरफ हैं लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि 8 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैले महाबलीपुरम को 1940 में ASI ने सिर्फ एक आने में खरीदा था।

दस रुपए का नोट तो आपने बहुत बार देखा होगा लेकिन गौर से नहीं देखा होगा। दस रुपए के पुराने नोट पर नजर आने वाले दो हिरनों के चित्र, महाबलीपुरम में मौजूद महान धरोहर अर्जुन का तप शिला पर बने दो हिरनों की प्रतिमा से लिए गए हैं। इंदिरा गांधी को महाबलीपुरम के ये हिरन इतने पसंद आ गए थे कि उन्होंने 10 रुपए के नोटों पर इन हिरनों का चित्र छापने का आदेश दिया था।

महाबलीपुरम तमिलाडु की राजधानी चेन्नई से 55 किलोमीटर की दूरी पर है। महाबलीपुरम का निर्माण पल्लव राजाओं ने करवाया था। इस वंश की स्थापना आज से करीब 1700 साल पहले 275 ईस्वी में हुई। 645 ईस्वी में पल्लव इतने शक्तिशाली थे कि तमिल इलाकों और दक्कन तक फैल गए। शक्ति और समृद्धि के इसी दौर में महाबलीपुरम का निर्माण हुआ। 

महाबलीपुरम भारत की महा बलशाली संस्कृति की जीवटता और संघर्ष का जीता जागता प्रमाण है। इसको देखने के बाद अमेरिका के इतिहासकार, लेखक और दार्शनिक विल डुरंट ने अपनी किताब Story Of Our Civilization में लिखा है, “हम उस धैर्य और हिम्मत के बारे में क्या कहें जिन्होंने एक पूरा मंदिर एक विशाल चट्टान को काटकर नक्काशी करके बनाया है। आश्चर्य इस बात पर है कि ये हिंदू शिल्पकारों की कोई बहुत महान नहीं बल्कि एक बहुत सामान्य सी उपलब्धि है।“

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बार-बार वन बेल्ट वन रोड और सिल्क रूट की बात करके पूरी दुनिया को चीन के प्राचीन गौरव की याद दिलाते हैं लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत करीब से शी जिनपिंग को भारत की महान संस्कृति का प्राचीन गौरव समझाएंगे और पूरी दुनिया इन ऐतिहासिक पलों की गवाह भी बनेगी। जब पूरी दुनिया शी जिनपिंग और मोदी की मुलाकात को देखेगी तो इसी बहाने वो महाबलीपुरम को देखेगी। 

जब महाबलीपुरम की तरफ नज़र जाएगी तो दुनिया को उन लोगों के त्याग और तपस्या की जानकारी मिलेगी जिन्होंने आज से 1300 साल पहले विशाल चट्टानों से कलात्मक युद्ध लड़के महाबलीपुरम का निर्माण किया था। आम तौर पर पूरी दुनिया में पत्थरो को जोड़कर मंदिरों का निर्माण किया जाता है लेकिन महाबलीपुरम में विशाल चट्टानों और पर्वताकार पत्थरों को काटकर उन पर नक्काशी करके मंदिरों और रथों का निर्माण किया गया है ।

महाबलीपुरम में चट्टानों को काटकर 19 प्रमुख कृतियों का निर्माण हुआ है। इसका निर्माण 100 से 150 सालों के बीच में हुआ है। ये 8 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला चट्टानों पर नक्काशी करके बनाया गया मंदिरों, रथों और गुफाओं का एक बहुत छोटा सा शहर नज़र आता है। हजारों मूर्तिकारों और मजदूरों ने अपनी पूरी जिंदगी यहीं पर बिता दी। शिल्पकारों और मजदूरों की पीढ़ियां की पीढ़ियां यहीं पर पैदा हुईं और यहीं पर खत्म हो गईं। अपने जीवन का बलिदान करके इन लोगों ने भारत की प्राचीन संस्कृति को अमर कर दिया।

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