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BLOG: कान भले ही सीधे हाथ से पकड़े या उलटे हाथ से...मतलब साफ़ है आधार ज़रूरी है

सुप्रीम कोर्ट यानी सर्वोच्च अदालत। जिसका काम न्याय करना और न्याय करने की प्रक्रिया के दौरान सभी असमंजस को दूर करना है। लेकिन हाल में आए सुप्रीम कोर्ट के दो फ़ैसले असमंजस में डाल रहे हैं।

Written by: India TV News Desk
Published on: September 29, 2018 20:10 IST
blog on supreme court verdict- India TV Hindi
blog on supreme court verdict

सुप्रीम कोर्ट यानी सर्वोच्च अदालत। जिसका काम न्याय करना और न्याय करने की प्रक्रिया के दौरान सभी असमंजस को दूर करना है। लेकिन हाल में आए सुप्रीम कोर्ट के दो फ़ैसले असमंजस में डाल रहे हैं। सबसे पहले आधार कार्ड पर आए फ़ैसले की बात करते हैं। बीते बुधवार को आए फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बैंक अकाउंट, मोबाइल फ़ोन और स्कूल एडमिशन के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता ख़त्म कर दी है। हालांकि कोर्ट ने आधार के फ़ायदे को दरकिनार नहीं किया है। कोर्ट ने दुनिया की सबसे बड़ी बायोमेट्रिक स्कीम को संवैधानिक रूप से मान्यता दी है। आपको रिटर्न फ़ाइल करने या पैन कार्ड बनवाने के लिए आधार कार्ड की कॉपी लगानी होगी। क्या इसका मतलब यह नहीं कि आधार की अनिवार्यता नहीं होने के बावजूद आधार अनिवार्य है!

बैंक अकाउंट में पैन कार्ड अनिवार्य है और पैन के लिए आधार। यह अलग बात है कि आधार से बैंक अकाउंट लिंक करने की ज़रूरत नहीं। पासपोर्ट बनवाने के लिए भी आधार कार्ड की मांग की जाती है। अब कान भले ही सीधे हाथ से पकड़े या उलटे हाथ से कान जब पकड़ना ही है तो सीधे रास्ते ही क्यों नहीं। मतलब साफ़ है आधार ज़रूरी है।

अब सुप्रीम कोर्ट का अगला निर्णय सेक्शन 497 पर जो सोचने पर मजबूर करता है। व्याभिचार कानून की वैधता पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने कहा “किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन सम्बंध बनाना अपराध नहीं है।” यह सही बात है यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता क्योंकि यह निजता का मामला है। लेकिन क्या यही समानता का अधिकार पुरुषों को भी है!

पुरुष का अपनी पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला से विवाहेत्तर सम्बंध पत्नी के साथ क्रूरता कहलाएगी या नहीं? कुछ और सवाल हैं मसलन उस अन्य महिला की सामाजिक स्थिति के लिए कोर्ट क्या मत रखता है? सुप्रीम कोर्ट कहता है कि “जो भी सिस्टम महिला की गरिमा के ख़िलाफ़ या भेदभाव वाला है वह संविधान के कोप को आमंत्रित करता है।” क्या संविधान केवल महिला हितार्थ कार्य करने को बाध्य है या फिर इसमें पुरुषों के लिए भी समान भाव है? कोर्ट ने सिर्फ़ आईपीसी की धारा 497 ही नहीं 198 को भी ग़ैर आपराधिक श्रेणी में रखा है। इसका मतलब शादीशुदा जीवन में पति-पत्नी की स्थिति बराबर है और व्याभिचार किसी के भी द्वारा किया जाए वह तलाक़ का आधार हो सकता है लेकिन गुनाह नहीं है। और जहां बराबरी की बात होती है वहां ‘महिला पुरुष की सम्पत्ति नहीं’ के साथ ‘पुरुष महिला की सम्पत्ति नहीं’ कहना ज़रूरी लगता है।

हम लोकतांत्रिक देश में रहते हैं जहां सर्वोच्च न्यायालय सामाजिक लोकतंत्र का रखवाला है। हाल ही में समलैंगिकता को आपराधिक श्रेणी से मुक्त कर कोर्ट ने सभी को समान रूप से जीने और अपना साथी चुनने का अधिकार दिया है। वहीं सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री पर लगा बैन भी हटा सामाजिक न्याय और अधिकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए कुरीति का अंत किया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास और मज़बूत हुआ है।

(ब्लॉग लेखिका मीनाक्षी जोशी देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं)

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