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Blog: #MeeToo.....मर्दों के साथ हुआ तो क्या कहेंगे!

औरतों की तकलीफ़ समझने के लिए आपको औरत बनने की ज़रूरत नहीं। औरतों की तरह सोचने और औरत की जगह ख़ुद को रखने की ज़रूरत है। शायद फिर आपको ‘मी टू’ समझ में आएगा।

Written by: India TV News Desk
Updated : October 15, 2018 20:22 IST
Meenakshi Joshi blog on MeToo campaign
Meenakshi Joshi blog on MeToo campaign

आप जहां काम कर रहे हैं। जहां फ़िल्म देखने बैठे हैं। आप जिस रेस्तरां में खाना खा रहे हैं। जिस बस, ट्रेन, विमान में सफ़र कर रहे हैं। ज़रा एक बार नज़र घुमा कर अपने चारों ओर देखिए, कितनी लड़कियां या औरतें आपके आस पास हैं? मैं दावे के साथ कह सकती हूं हर उस पब्लिक स्पेस में जहां आप बैठे हैं वहां पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की संख्या आधी से भी कम होगी। कहीं-कहीं तो गिनती दहाई में भी नहीं होगी। ऐसे में आप क्यूं और कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कोई औरत अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के लिए बिना हिचकिचाहट, फ़ौरन आवाज़ उठाएगी!

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औरतों की तकलीफ़ समझने के लिए आपको औरत बनने की ज़रुरत नहीं। औरतों की तरह सोचने और औरत की जगह ख़ुद को रखने की ज़रूरत है। शायद फिर आपको ‘मी टू’ समझ में आएगा। ज़रा सोच कर देखिए आपकी या आपका बॉस आपको तब तक मानसिक प्रताड़ना दे जब तक की आप उसके सामने अपने आत्मसम्मान को तिलांजलि ना दे दें... तब आप क्या करेंगे? आप क्या करेंगे तब जब उस नौकरी से आपका परिवार पलता हो? क्या करेंगे आप अगर आपका करियर ख़त्म होने की नौबत आ जाएगी? या तो आप नौकरी छोड़ेंगे या आत्मसमर्पण कर देंगे। ठीक वैसे ही औरतें भी करती हैं। किसी ने नौकरी छोड़ दी...किसी ने काम ही छोड़ दिया। किसी ने हालात से समझौता कर लिया। और जिसने आवाज़ उठाने की जुर्रत की उस महिला को आपने चरित्रहीन बना दिया!!! क्यों? जैसे हर आदमी बलात्कारी नहीं होता वैसे ही हर औरत चरित्रहीन नहीं होती। सबसे आसान है महिला को चरित्रहीन कह कर सच से मुंह फेर लेना।

ज़रा फिर सोचिए जब आप साइकिल चला रहे हो कोई आपको ग़लत तरह से छू कर निकल जाए। किसी टिकट लाइन या मेले में खड़े हों और आपको कोई निजी अंग पर ज़ोर से मार कर चला जाए। आप वहीं तड़पते रह जाएंगे। कुछ करना तो दूर सोचने की स्थिति तक नहीं रहेगी। यह सब हर दूसरी लड़की उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर ज़रूर झेलती है। कुछ लड़ती हैं कुछ चुप रह जाती है। वो चुप रहने वाली लड़कियां आपको बेचारी और लड़ने वाली वैश्या क्यूं लगती है? 

आप रैगिंग का मतलब समझते ही हैं। रैगिंग करने वाला सैडिस्ट यानी दूसरे की पीड़ा पर ख़ुश होता है। क्या रैगिंग झेलने वाले सारे बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं? कुछ हालात से समझौता करते हैं। कुछ लड़ते हैं। कुछ आत्महत्या तक कर लेते हैं। ठीक वैसे ही कई लड़कियां वर्कप्लेस पर दुराचार का सामना करतीं हैं फिर भी काम करती रहतीं हैं। जब आप बच्चों को पढ़ाई से नहीं रोकते। आदमियों को नौकरी छोड़ने के लिए नहीं कहते। तो लड़कियों को यह ज्ञान क्यूं देते हैं? आज जब लड़कियां हिम्मत जुटा कर बोल रहीं हैं तो उनका साथ देने की जगह उन पर लांछन लगा रहे हैं? इसी डर की वजह से तो लड़कियां चुप रहती हैं। और आप लोग गालियां देकर उनके डर को सही साबित कर रहे हैं। शुक्र है! सोशल मीडिया है वर्ना कई औरतें मरते दम तक नहीं बोलतीं। थोड़ा संवेदनशील बने। दर्द को झूठ मानते है तो मानिए लेकिन प्रतिक्रिया देते वक़्त कम से कम मज़ाक मत उड़ाइए।

(ब्लॉग लेखिका मीनाक्षी जोशी देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं)​

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