नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में नर्सों की स्थिति को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आज कहा कि शिक्षा और चिकित्सा धन ऐंठने वाले धंधे बन गए हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। जनहित याचिका में दावा किया गया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नर्सों के अधिकारों की रक्षा को लेकर दिशा-निर्देश दिये जाने के बावजूद निजी चिकित्सा संस्थानों में नर्सों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।
केंद्र की ओर से अधिवक्ता मानिक डोगरा ने अदालत को बताया कि नर्सों के वेतन और काम से जुड़ी स्थितियों के बारे में दिशा-निर्देश तय किये जा चुके हैं और उन्हें लागू करना हर राज्य की जिम्मेदारी है। पीठ ने कहा कि याचिका से नर्सों के शोषण का पता चलता है। उसने कहा कि ‘अब शिक्षा और चिकित्सा फायदे का कारोबार बन चुके हैं।’ पीठ इसी तरह की एक याचिका के साथ इस पीआईएल पर भी आठ अक्तूबर को आगे की सुनवाई करेगी।
अधिवक्ता रोमी चाको की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि निजी चिकित्सा प्रतिष्ठानों में नर्स ‘मामूली वेतन पर काम कर रही हैं और अमानवीय परिस्थितियों’ में रह रही हैं।