नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को निरस्त कर दिया है। मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है। हालांकि इस फसले का सितंबर 2020 तक लाभ ले चुके लोगों पर असर नहीं पड़ेगा। मराठा आरक्षण के तहत जिनको पहले नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दाखिले का लाभ मिल चुका है उन्हें भविष्य में इसका लाभ नहीं मिलेगा।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं घोषित किया जा सकता है। आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पहले लिए गए दाखिलों नियुक्तियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वे पहले की तरह बने रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 के मंडल फैसले (इंदिरा साहनी फैसले) को वृहद पीठ के पास भेजने से भी इनकार कर दिया। पांच जजों की बेंच ने सुनवाई के दौरान तैयार तीन बड़े मामलों पर सहमति जताई और कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति या मामला पेश नहीं किया।
शीर्ष अदालत ने राज्य को असाधारण परिस्थितियों में आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा तोड़ने की अनुमति देने समेत विभिन्न मामलों पर पुनर्विचार के लिए बृहद पीठ को मंडल फैसला भेजने से सर्वसम्मति से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बंबई हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठों के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था।