कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उस कॉलेज में ईश्वर चंद्र विद्यासागर की आवक्ष प्रतिमा स्थापित की, जिसमें पुरानी प्रतिमा को अमित शाह के रोड शो के दौरान BJP-TMC समर्थकों की झड़प में नष्ट कर दिया गया था। मूर्ति के अनावरण कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने प. बंगाल के राज्यपाल और BJP पर भी निशाना साधा। उन्होंने बंगाल को गजरात बनाने की साजिश रचे जाने का दावा भी किया।
'दीदी' का BJP पर आरोप
उन्होंने कहा कि "मैं राज्यपाल का सम्मान करती हूं, लेकिन हर पद की संवैधानिक सीमा होती है। बंगाल को बदनाम किया जा रहा है। अगर आप बंगाल और उसकी संस्कृति को बचाना चाहते हैं, तो साथ आइए। बंगाल को गुजरात बनाने की साज़िश रची जा रही है। बंगाल गुजरात नहीं है।" बता दें कि 14 मई को कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प में विद्यासागर की मूर्ति टूट गई थी। इसके बाद से दोनों दलों के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे।
कौन हैं ईश्वरचंद्र विद्यासागर?
महान दार्शनिक, समाजसुधारक और लेखक ईश्वरचंद विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1820 को कोलकाता में हुआ था। वह स्वाधीनता संग्राम के सेनानी भी थे। ईश्वरचंद विद्यासागर को गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था। उन्होंने स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह कानून के लिए खूब आवाज उठाई और अपने कामों के लिए समाजसुधारक के तौर पर भी जाने जाने लगे, लेकिन उनका कद इससे भी कई गुना बड़ा था।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर की जन्मभूमि और पढ़ाई
ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था, जन्म की तारीख ऊपर बता दी गई है। ईश्वरचंद्र विद्यासागर का परिवार गरीब था लेकिन धार्मिक परिवार था। उनके पिता ठाकुरदास बन्धोपाध्याय और माता भगवती देवी थीं। ईश्वरचंद्र विद्यासागर का पूरी बचपन गरीबी में ही बीता। जहां तक पढ़ाई की बात रही तो उन्होंने गांव के स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ली और फिर अपने पिता के साथ कोलकाता आ गए। पढ़ाई में अच्छे होने की वजह से यहां उन्हें कई संस्थानों से छात्रवृत्तियां मिली। उनके विद्वान होने की वजह से ही उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई थी।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर का करियर
साल 1839 में उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और फिर साल 1841 में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था। उस वक्त उनकी उम्र महज 21 साल ही थी। फोर्ट विलियम कॉलेज में पांच साल तक अपनी सेवा देने के बाद उन्होंने संस्कृत कॉलेज में सहायक सचिव के तौर पर सेवाएं दीं। यहां से उन्होंने पहले साल से ही शिक्षा पद्धति को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू कर दी और प्रशासन को अपनी सिफारिशें सौंपी। इस वजह से तत्कालीन कॉलेज सचिव रसोमय दत्ता और उनके बीच तकरार भी पैदा हो गई। जिसके कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। लेकिन, उन्होंने 1849 में एक बार वापसी की और साहित्य के प्रोफेसर के तौर पर संस्कृत कॉलेज से जुडे़। फिर जब उन्हें संस्कृत कालेज का प्रधानाचार्य बनाया गया तो उन्होंने कॉलेज के दरवाजे सभी जाति के बच्चों के लिए खोल दिए।
समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर
ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। इससे भी कई ज्यादा उन्होंने इन स्कूलों को चलाने के पूरे खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। स्कूलों के खर्च के लिए वह विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए बंगाली में लिखी गई किताबों की बिक्री से फंड जुटाते थे। उन्होंने विधवाओं की शादी के हख के लिए खूब आवाज उठाई और उसी का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ।
उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें समाज सुधारक के तौर पर पहचान दी। उन्होंने साल 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बंगला भाषा की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया था। नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।