नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार को ताजमहल और इसके आसपास के पर्यावरण को सुरक्षित व संरक्षित रखने के लिए एक ऐसी सर्वागीण योजना बनाने को कहा जो इस ऐतिहासिक धरोहर को एक पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि अगले चार सौ साल तक सहेज कर रख सके। यह निर्देश जस्टिस मदन बी.लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने दिया। पीठ ने इसके साथ ही ताजमहल और इसके आसपास के पर्यावरण के संरक्षण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए और उठाए जाने वाले कदमों को 'तदर्थ' करार दिया।
राज्य सरकार ने कहा कि उसने स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर से योजना बनाने को कहा है, लेकिन अदालत ने कहा कि इस योजना में संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व व अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से आग्रह किया कि विशेषज्ञों के बजाए अदालत याचिकाकर्ता एम.सी.मेहता और वकील ए.डी.एन.राव से सलाह देने के लिए कह सकती है क्योंकि मेहता को पर्यावरणीय मामलों में 33 साल का अनुभव है। इस पर अदालत ने कहा, "आप कैसे देश के लोगों को बाहर (योजना बनाने से) रख सकते हैं। यह (योजना का बनना) बंद कमरे में नहीं हो सकता।"
पीठ ने कहा कि स्मारक को महज किसी एक पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि अगले 300 से लेकर 400 साल तक संरक्षित किया जाना चाहिए। अदालत ने तुषार मेहता की दलीलों के जवाब में कहा कि किसी नौकरशाही योजना की नहीं बल्कि एक सर्वागीण योजना बनाने की जरूरत है। कोई जल्दी नहीं है। अभी एक अंतरिम रिपोर्ट दी जा सकती है। आपको जो चीज बनानी है, वह चार सौ सालों तक बनी रहने वाली है।
इस बात की तरफ इशारा करते हुए कि जो पौधे लगाए गए थे उनमें से सत्तर फीसदी नष्ट हो चुके हैं, अदालत ने कहा, "जब आपके पास कोई योजना नहीं होती और आप ऐसे ही तदर्थ उपाय करते हैं, तो ऐसी ही बातें होती हैं।" अदालत ने मामले की सुनवाई को आठ हफ्तों के लिए स्थगित कर दिया।