Friday, November 22, 2024
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'बिन पानी सब सून', महाराष्ट्र में 47 साल में सबसे भीषण सूखे की आँखों देखी

महाराष्ट्र के 26 जिलों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं, इनमें औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, धुले, जलगांव, नाशिक, नंदूरबार, अकोला, अमरावती, बुलढाणा, बीड, हिंगोली, जालना, नांदेड़, लातूर, उस्मानाबाद, यवतमाल, वाशिम, वर्धा, चंद्रपुर, नागपुर, पुणे, सांगली, सातारा, सोलापुर और पालघर शामिल हैं।

Reported by: Meenakshi Joshi
Updated on: June 01, 2019 21:04 IST
drought- India TV Hindi
Image Source : PTI प्रतिकात्मक तस्वीर

मुंबई। महाराष्ट्र के अहमदनगर के कई गांव भयंकर सूखे की चपेट में है। साल 1972 के बाद महाराष्ट्र के 21 हजार गांव सूखे से जूझ रहे हैं। इलाके के लोग बताते हैं कि साल 1972 में इलाके में पानी तो था लेकिन खाने को कुछ नहीं था। उस साल 100% बारिश हुई थी लेकिन साल दर साल मानसून कमजोर होता गया और आज लोगों के पास खाने को अनाज तो है लेकिन पानी नहीं। कमजोर मानसून के बाद सरकार ने साल की शुरुआत में ही 358 में से 151 तहसील को सूखा ग्रस्त घोषित किया है। पूरे राज्य के बांधों में कुल 16 फीसदी पानी बचा है, और मराठवाड़ा में सिर्फ तीन फीसदी पानी में ही लोग गुजर बसर कर रहे हैं।मानसून आने में अब भी 15 दिन का समय बचा है।

खेती बनी घाटे का सौदा

जलगांव में अनार उगाने वाला किसान भगवान कृष्ण बीते 4 महीने से टैंकर से पानी खरीद कर अपने बागान को सींच रहे हैं । 20,000 रुपये प्रति टैंकर खरीदते-खरीदते आज अपने बगीचे पर वो डेढ़ लाख रुपये खर्च कर चुके हैं। बाज़ार में 80 से 180 रुपये प्रति किलो बिकने वाला अनार आज मई-जून की तपती गर्मी में इस बगीचे में ही जलकर राख हो गया है। यानी किसान को घाटे के अलावा कुछ नहीं मिला।

दूर से लाना पड़ रहा है पानी

मोहटा गांव का कुआं अब मेरे सामने है। यह कुआं प्राकृतिक जलस्रोत था लेकिन कमज़ोर बारिश ने इसे सूखा कुआं बना दिया है। अब यहां दिन में दो बार 10 हजार या 25 हजार लीटर वाले पानी के टैंकर से भरा जाता है। जीवन जीने की मूल आवश्यकता पानी है इसलिए घर के बड़े बूढ़े सब अपनी बाल्टियों को भरकर 1-1 किलोमीटर तक का सफ़र पैदल तय करते हैं। यह पानी भी पीने योग्य नहीं है लेकिन मजबूरी है यही पानी छान कर पीना है। 13 साल की ऋतुजा बाल्टी भरते हुए कहती है "अभी स्कूल की छुट्टी है, दिन में दो बार यहाँ पानी निकालने आती हूँ। क्या करूँ करना है। पानी चाहिए।"

एक महिला नाराज होते हुए हम से ही शिकायत करती है "हमारे पास पानी का टैंकर क्यों नहीं आता। 2 किलोमीटर दूर से हमें चलकर आना पड़ता है। कभी-कभी देरी की वजह से पानी नहीं मिलता।" पानी भरने वालों में ज्यादातर लड़कियां और महिलाएं  हैं। एक अन्य महिला कहती है, " पानी गंदा है लेकिन छान कर पीते हैं । हमें इसकी आदत हो गयी है। पानी न मिलने से बेहतर है गंदा ही सही लेकिन पानी मिले।"

जानवर भी झेल रह हैं सूखे की मार

मोहटा गांव से कुछ दूर एक हैंडपंप दिखता है। इस हैंडपंप में 4 महीने से पानी नहीं है। क्योंकि साल भर पहले पानी का लेवल 100 मीटर था आज भूजल 300 मीटर नीचे चला गया है। जिस वजह से इंसान तो इंसान जानवर भी सूखे की मार झेल रहे हैं। पशुओं को सूखे से बचाने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने मराठवाड़ा क्षेत्र में 1066 फोडर कैंप स्थापित किए हैं। जहाँ मवेशियों के रहने खाने की व्यवस्था है वहीं इनके मालिक खाट पर सुबह से रात गुज़ारते हैं। पिछले 3 महीने से ये लोग घर से दूर चारा केंद्र में ही जानवरों के साथ समय काट रहे हैं।

भगवान से की जा रही है बारिश की प्रार्थना

अब हम दुले चांदगाँव में एक मंदिर देख रहे है जिसके पोर्च पर भजन मंडली बैठी है और मराठी भाषा में गाँव वाले भजन गया रहे हैं। पूछने पर बताया मारुतिनंदन से प्रार्थना है जल्द से जल्द बारिश हो और हरियाली लौटे। राज्य की सरकार मौजूद पानी का नियंत्रण और वितरण कर सकती है लेकिन ऊपर वाली सरकार जो दुनिया की कमान हाथ में लिए है अब उन्हीं से गाँव वालों की आस है।

26 जिलों में सूखे जैसे हालात

राज्य के 26 जिलों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं, इनमें औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, धुले, जलगांव, नाशिक, नंदूरबार, अकोला, अमरावती, बुलढाणा, बीड, हिंगोली, जालना, नांदेड़, लातूर, उस्मानाबाद, यवतमाल, वाशिम, वर्धा, चंद्रपुर, नागपुर, पुणे, सांगली, सातारा, सोलापुर और पालघर शामिल हैं। जालना में 22 दिनों के बाद पानी की सप्लाई होतीहै, मनमाड़ में 20 दिन, परभणी में 14 दिन, लातूर,बीड और हिंगोली में 10 दिन, औरंगाबाद में 3 दिनों के अंतर पर पानी की सप्लाई होती है। सूखाग्रस्त इलाकों में देवेंद्र फडणनवीस सरकार 5 हजार 493 टैंकरों से पीने के पानी की सप्लाई कर रही है।

यहाँ पानी के लिए तरसती आँखों को देख शहरी इलाकों में पानी की बर्बादी पर कोफ़्त होता है । जल ही जीवन है। जल है तो आज है जल है तो भविष्य है यदि जल नहीं रहा तो कोई जीव नहीं बचेगा यह ध्यान में रखते हुए पानी का संचय करने की आवश्यकता है।

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