नई दिल्ली: महाराष्ट्र में हक की आवाज बुलंद करने के लिए सड़क पर किसानों का सैलाब उतर आया था। नासिक से लगभग 30 हजार आक्रोशित किसान मुंबई निकले थे जिन्होंने नासिक से चलते समय पूरी तैयारी कर ली थी। किसी के सिर पर गठरी थी तो किसी की पीठ पर राशन। इन सबमें एक किसान ऐसा भी था जिसने 30 हजार से भी ज्यादा किसानों की भीड़ में सबका ध्यान आकर्षित किया। इस किसान ने अपने सिर पर एक छोटा सा सोलर पैनल पर रखा था जिसकी मदद से वो खुद और कई किसान अपना मोबाइल चार्ज करते रहे। सोशल मीडिया पर इस किसान की फोटो खूब शेयर की जा रही है।
किसानों के स्वागत में जहां मुंबई वासियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी, वहीं किसानों ने भी अपने लॉन्ग मार्च के दौरान मुंबई वासियों को कोई असुविधा नहीं होने दी। यहां तक कि 30,000 किसानों की मौजूदगी के बावजूद पुलिस को दक्षिण मुंबई का यातायात भी इधर-उधर करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। किसानों ने मुंबई जैसे महानगर की समस्या को समझा। उन्हें पता चला कि शहर में बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं, तो उन्होंने सायन से आजाद मैदान का पैदल सफर सुबह शुरू करने के बजाय रात को ही करने का निर्णय किया। रात्रि भोजन के बाद वे अर्द्धरात्रि डेढ़ बजे ही आजाद मैदान के लिए रवाना हो गए और शहर में भीड़भाड़ का दौर शुरू होने के पहले ही सुबह आठ बजे तक आजाद मैदान पहुंच गए।
वहीं विपक्ष और सहयोगी शिवसेना के दबाव में भाजपा नीत महाराष्ट्र सरकार ने आज आंदोलनरत किसानों की मांगें मान लीं जिसमें वन भूमि पर उनका अधिकार शामिल है। महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को लिखित में आश्वासन दिया है कि अगले 6 महीने के अंदर उनकी अधिकतर मांगे पूरी कर दी जाएंगी। मांगों को लेकर हजारों किसान मुंबई पहुंचे थे। नासिक से मुंबई तक लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पैदल चलकर आए किसानों के लिए यह बड़ी जीत है।
किसानों ने 7 मार्च को शुरू किया अपना आंदोलन वापस ले लिया है। राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि उनकी ‘‘सभी मांगों’’ को स्वीकार किया जा रहा है। वह माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी की मौजूदगी में दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान में धरना दे रहे किसानों को संबोधित कर रहे थे।
विधान भवन के बाहर संवाददाताओं से बात करते हुए मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा, ‘‘कृषि उपयोग में लाई जाने वाली वन भूमि आदिवासियों और किसानों को सौंपने के लिए हम समिति बनाने पर सहमत हो गए हैं। विधान भवन में आज किसानों और आदिवासियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक हुई। हम कृषि भूमि आदिवासियों को सौंपने के लिए समिति बनाने पर सहमत हो गए हैं बशर्ते वे 2005 से पहले जमीन पर कृषि करने के सबूत मुहैया कराएं। हमने उनकी लगभग सभी मांगें मान ली हैं।’’