सिमडेगा. कोरोना काल में अनेक लोगों ने त्रासदी झेली लेकिन इसी दौरान पिछले सोलह माह से लापता सिमडेगा के मार्कुस ने बेहद बुरे दिन देखे। लोगों के कथित दुर्व्यवहार से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था, हालांकि, एक गैर सरकारी संगठन के सहयोग और उपचार से ठीक होने बाद बृहस्पतिवार को मार्कुस का सिमडेगा में अपने परिवार से पुनर्मिलन हुआ। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
लंबे समय बाद परिवार से मिलने वाला मार्कुस अपने भाई के गले लगकर रोता रहा और जिस अदालत परिसर में यह पुनर्मिलन हुआ वहां भी लोगों की आंखों से आंसू बह निकले। लगभग 35 वर्षीय मार्कुस की तेलंगाना में देखरेख करने वाली डॉ.अन्नम श्रीनिवासन की गैर सरकारी संस्था ने बृहस्पतिवार को जब यहां अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मधुरेश कुमार वर्मा एवं मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आनंदमणि त्रिपाठी के समक्ष उनके भाई एवं परिजनों को सौंपा तो मार्कुस काफी देर तक अपने भाई के गले लगकर रोता रहा। यह भावुकतापूर्ण दृश्य देखकर अदालत परिसर में उपस्थित सभी लोगों की आंखें नम हो आयीं।
पिछले वर्ष फरवरी में गोवा में श्रमिक का काम करने गये अविवाहित मार्कुस मार्च में लागू हुए कोविड के प्रथम लॉकडाउन में फंस गये। जिसके बाद वह झारखंड में सिमडेगा स्थित अपने गांव के लिए किसी तरह ट्रेन से निकला तो गलती से भुवनेश्वर होते हुए तेलंगाना पहुंच गया जहां से झारखंड की उसकी ट्रेन छूट गयी। उसके बाद मार्कुस को बेहद परेशानी भरे दिनों से गुजरना पड़ा। हालांकि, एक स्वयंसेवी संस्था अन्नम सेवा फाउंडेशन ने उसकी मदद की और उपचार कराया।
सिमडेगा की जिला अदालत में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मधुरेश कुमार वर्मा एवं सीजेएम आनंदमणि त्रिपाठी के समक्ष अविवाहित मार्कुस को उसके छोटे भाई को सौंपा गया। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि लॉकडाउन में मार्कुस तेलंगाना में फंस गया था। जहां अनेक लोगों ने उससे अमानवीय व्यवहार किया। इसके चलते उसका मानसिक संतुलन तक बिगड़ गया था।
पुलिस ने बताया कि सिमडेगा के कुरडेग प्रखंड के छाताकाहु का रहने वाला मार्कुस फरवरी 2020 में गोवा काम करने गया था। मार्च में कोरोना की पहली लहर शुरू होने के बाद जब लॉकडाउन लगा तो वह भी अन्य मजदूरों की तरह घर लौट रहा था। लेकिन भुवनेश्वर होते हुए वह तेलंगाना के खंबन पहुंच गया। खंबन जिले में झारखंड की उसकी ट्रेन छूट गयी। ट्रेन छूट जाने के बाद अंजान जगह और लॉकडाउन का भयावह काल देख मार्कुस हताश हो गया। हताशा में उसका मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया था। बाद में वहां के प्रशासन ने मार्कुस को वहां के डा.अन्नम श्रीनिवासन राव के गैर सरकारी संगठन ‘अन्नम सेवा फाउंडेशन’ को सौंप दिया। लेकिन, इस समय तक मार्कुस की हालत इतनी खराब हो गई थी वह अपना नाम पता भी नहीं बता पा रहा था। डा.श्रीनिवासन राव ने उसका इलाज करवाया और लगभग सोलह माह बाद 10 दिन पूर्व मार्कुस की विस्मृति दूर हुई और उसने अपना नाम पता बताया।