साल 2011 में पटरी पर लौटी जिंदगी-
“साल 2011 में मेरी जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी। मेरी बेटी हाईस्कूल में पहुंच गई थी और मेरा बेटा कॉलेज में था। मैं हर दिन अपनी बेटी को उसके ट्यूशन से लाया और ले जाया करता था। लेकिन वो जनवरी के महीने में एक दिन ट्यूशन से घर नहीं लौटी। जब मैने उसके दोस्तों से और उसके टीचर से पता किया तो उन्होंने बताया कि आज एक सरप्राइज्ड टेस्ट था, लेकिन वो उसे जल्द खत्म करके चली गई। उसने अपनी आन्सर सीट जमा की और यहां से चली गई। मैने उसे खूब ढूंढा। मैने यह बात अपने बेटे को भी नहीं बताई। उम्मीद के मुताबिक पुलिस ने इस बार भी हमारी मदद नहीं की। मैने उसे हर जगह ढूंढा। राजमार्गों पर मैने हर किसी को उसकी फोटो दिखाई। करीब चार दिन बाद मैने उम्मीद खो दी। मैने फिर एक रात अपने बेटे को फोन लगाया। मैं उस दिन सड़क के किनारे एक भिखारी की तरह बैठा था और मैं जीवन में पहली बार अपने बच्चों के सामने रोया था एक असहाय पिता के जैसा।”
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