रांची। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव द्वारा रिम्स में जेल मैनुअल के कथित उल्लंघन के मामले में आज एक बार फिर राज्य सरकार झारखंड उच्च न्यायालय में संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी। राज्य सरकार के इस रवैये से नाराज न्यायालय ने स्पष्ट और पूरी जानकारी पेश करने के निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई आठ जनवरी के लिए स्थगित कर दी। न्यायमूर्ति अपरेश कुमार सिंह की पीठ के समक्ष आज लालू प्रसाद यादव द्वारा रिम्स में भर्ती रहने के दौरान जेल मैनुअल के कथित उल्लंघन से जुड़ा मामला सूचीबद्ध था। इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अपर अधिवक्ता आशुतोष आनंद न्यायाधीश के सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।
न्यायालय ने राज्य सरकार के अधिवक्ता से पूछा कि आखिर लालू प्रसाद यादव को पेइंग वार्ड से रिम्स निदेशक के बंगले में किसके आदेश से स्थानांतरित किया गया था? न्यायालय ने यह भी पूछा कि जब जेल अधीक्षक ने दो टूक कहा कि यह निर्णय जेल प्रशासन ने नहीं लिया था तो आखिर यह निर्णय किसने और किसके कहने पर लिया। न्यायमूर्ति सिंह ने जेल मैनुअल के उल्लंघन के मामले में अनेक अन्य सवाल भी पूछे जिनका सरकार के अधिवक्ता जवाब नहीं दे सके। इसके बाद राज्य सरकार ने मामले में संतोषजनक जवाब देने के लिए और समय मांगा जिस पर न्यायालय ने सख्त नाराजगी जतायी।
इस पर न्यायमूर्ति सिंह ने टिप्पणी की कि यदि राज्य सरकार को इसी प्रकार मामले में तथ्य जुटाने और बताने में संकोच है और वह स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रही है तो फिर न्यायालय को न्याय मित्र नियुक्त करने में गुरेज नहीं होगा। राज्य सरकार ने इसके बाद न्यायालय से पूरा विवरण देने के लिए अंतिम मौके के तौर पर और समय देने का अनुरोध किया। न्यायालय ने अंतिम अवसर प्रदान करते हुये सुनवाई आठ जनवरी के लिये स्थगित कर दी और कहा कि राज्य सरकार अगली तारीख पर पूरी तैयारी के साथ पेश हो। इससे पूर्व मामले की सुनवाई के दौरान जेल अधीक्षक की ओर से बताया गया कि जेल के बाहर कैदियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है।
सरकार की ओर से बताया गया कि कोरोना के प्रकोप को देखते हुए रिम्स निदेशक और रिम्स अधीक्षक की सलाह पर जिला प्रशासन ने लालू प्रसाद को निदेशक बंग्ले में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया था। इस पर न्यायालय ने जिला प्रशासन से उक्त रिपोर्ट मांगी जिसके तहत लालू प्रसाद को बंगले में शिफ्ट किया गया था। इसके अलावा न्यायालय ने ऐसे मामले को लेकर बनाई गई प्रक्रिया की भी जानकारी मांगी है। सेवादार के मामले में न्यायालय को बताया गया कि जेल में सेवादार देने का प्रावधान है। इस पर न्यायालय ने कहा कि यदि किसी कैदी का जेल के बाहर इलाज हो रहा है, तो क्या उसे सेवादार मिल सकता है? सेवादार नियुक्त करने की प्रक्रिया क्या है? इस पर भी सरकार के पास कोई जवाब नहीं था।
न्यायालय ने कहा, ‘‘सरकार इस मामले में तैयारी नही कर सकी है और जो भी जवाब दिया जा रहा है, वह संतोषप्रद नहीं है।’’ इससे पूर्व, 27 नवंबर को लालू के मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार को जेल मैन्युअल के उल्लंघन के बारे में विस्तृत जानकारी पेश करने के निर्देश दिये थे। सीबीआई ने न्यायालय को बताया था कि लालू रिम्स में मिली इलाज की सुविधा का दुरुपयोग कर रहे हैं जिसको लेकर हाल के दिनों में काफी विवाद भी हुआ है और यह सारी बातें मीडिया में भी प्रकाशित और प्रसारित हुई हैं।
न्यायमूर्ति सिंह ने सीबीआई की यह बात सुनने के बाद कहा था कि इस मामले में वह चार दिसंबर को सुनवाई करेंगे। राज्य सरकार ने चार दिसंबर को सुनवाई के दौरान भी सवालों का विस्तृत जवाब देने के लिए और समय की मांग की थी। न्यायालय ने लालू की जमानत पर सुनवाई के दौरान अक्तूबर में जेल में रहने के दौरान लालू प्रसाद से मुलाकात करने वालों के बारे में पूरी रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया था। लालू प्रसाद का इस समय दुमका कोषागार से गबन के मामले में न्यायिक हिरासत में रिम्स में इलाज हो रहा है। दुमका के इस मामले के अलावा चाईबासा के दो मामलों एवं देवघर के मामले में लालू प्रसाद को जमानत मिल चुकी है।