Friday, December 20, 2024
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Blog: भावनाओं की राख से ही कट्टरता की आग जन्म लेती है, आवाज बुलंद करने का शांतिपूर्ण प्रदर्शन ही सही रास्ता

शांतिपूर्ण ढंग से होने वाला प्रदर्शन इस विरोध में दूसरे धर्मों का समर्थन भी जोड़ सकता है। बंटवारा कभी जुड़ जाने की इच्छाशक्ति से मजबूत नहीं हो सकता। लेकिन, इसके लिए साथ आना पड़ेगा और साथ आने के लिए विरोध प्रदर्शन के मायने भी बदलने की जरूरत है।

Written by: Lakshya Rana @LakshyaRana6
Published : December 18, 2019 23:22 IST
Vehicles torched by protestors agitating against the...
Image Source : PTI Vehicles torched by protestors agitating against the passing of Citizenship Amendment Bill (CAB) at Sanmtragachi in Howrah district of West Bengal, Saturday.

नई दिल्ली: भाजपा का वोट बैंक मजबूत हो रहा है। विरोध प्रदर्शन करने वालों के हाथ में उठा हर पत्थर, हर ईंट, डंडा, लाठी, सब कुछ भाजपा का वोट बैंक तैयार कर रहा है। अगर आपको यह मंजूर है तब तो फिर सब ठीक है। लेकिन, इससे क्या होगा? जो हिंदू, GDP में गिरावट, नौकरियों में कमी, अपराधिक घटनाओं में इजाफा होने या और तमाम दूसरे मुद्दों के मद्देनजर मोदी सरकार का विरोध कर रहे थे, वह भी अब मोदी की ओर आकर्षित होंगे।

यह किसी भी हिंसक विरोध प्रदर्शन का साइड इफेक्ट हो सकता है। क्योंकि, हिंसा सबसे पहले भावनाओं को जलाती है। पहला और दूसरा, दोनों पक्ष इससे प्रभावित होते हैं और इस बात को मानिए कि भावनाओं की राख से ही कट्टरता की आग जन्म लेती है। प्रदर्शन हिंसक नहीं, शांतिपूर्ण होना चाहिए। समंदर के शांत होने की आवाज धरती के आखिरी कोने तक पहुंचती है। इसीलिए, अगर आवाज बुलंद करनी है तो शांतिपूर्ण प्रदर्शन ही सही रास्ता है, नहीं तो सरकार शांति बहाल करने के लिए और भी दूसरे कदम उठाने को मजबूर होगी। 

शांतिपूर्ण ढंग से होने वाला प्रदर्शन इस विरोध में दूसरे धर्मों का समर्थन भी जोड़ सकता है। बंटवारा कभी जुड़ जाने की इच्छाशक्ति से मजबूत नहीं हो सकता। लेकिन, इसके लिए साथ आना पड़ेगा और साथ आने के लिए विरोध प्रदर्शन के मायने भी बदलने की जरूरत है। विरोध प्रदर्शन इसलिए नहीं होना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को नागरिकता नहीं दी जाएगी। बल्कि, भारतीय मुसलमानों की नागरिकता पर खतरा है या नहीं? इस सवाल के साथ कोई भी अपनी आवाज उठाने के लिए स्वतंत्र है। 

लेकिन, भारतीय मुसलमानों की नागरिकता पर खतरे का यह सवाल तो तभी खत्म हो जाता है जब देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सार्वजनिक तौर पर कहते हैं कि किसी भी भारतीय मुसलमान की नागरिकता को CAA से खतरा नहीं है। हालांकि, इसी बीच सरकार का साफ कहना है कि वह 2024 से पहले NRC लाएगी, जिसमें सभी से उसके भारतीय होने के दस्तावेज मांगे जाएंगे। ऐसे में अगर कोई भी भारतवासी मुसलमान किसी भी कारण से NRC के समय अपने सभी दस्तावेज नहीं दिखा पाया तो उसका क्या होगा?

क्योंकि, अगर हिंदू या किसी भी गैर मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखने वाला कोई शख्स NRC के समय अपने दस्तावेज दिखा पाने में असफल हो भी गया तो उसे नए नागरिकता कानून के तहत बिना बहुत ज्यादा परेशानी के नागरिकता मिल जाएगी। लेकिन, मुसलमान कहां जाएगा? ऐसे में सरकार को इस पर सभी लोगों को भरोसे में लेने के लिए अपना प्लान डिसक्लोज करना चाहिए। वह प्रक्रिया बतानी चाहिए, जिससे वह अपने कथन के मुताबिक हर भारतीय मुसलमान की नागरिकता की रक्षा करने  के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा कर रही है।

मेरी नजरों में नया नागरिकता कानून किसी विरोध की जड़ नहीं होना चाहिए। लेकिन, जब इसे NRC के साथ जोड़कर देखना हो, तो कई मायनों में विरोध हो सकता है। क्योंकि, मुसलमानों की नागरिकता की क्रब पर हिंदुस्तान आबाद नहीं हो सकता। हिंदुस्तान को हिंदुस्तान पुकारने के लिए उर्दू की जरूरत है और उर्दू बिना मुसलमानों के अधूरी है। भारत का उर्दू में नाम हिंदुस्तान ही है। (लक्ष्य कुमार राणा)

(इस लेख में व्यक्त सभी विचार लेखक के निजी विचार हैं।)

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