नई दिल्ली. पिछले डेढ़ महीने से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध हाल के वर्षो में इस तरह की किसी अन्य आमने-सामने (फेसऑफ) की स्थिति की तुलना में सबसे अधिक समय तक बने रहने की संभावना है। दोनों सेनाओं के बीच सीमा पर व्याप्त तनाव के कारण आमने-सामने की स्थिति 2017 में डोकलाम वाले तनाव से भी अधिक दिनों तक चल सकती है। डोकलाम में दोनों सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने थी।
डोकलाम गतिरोध की तुलना में पूर्वी लद्दाख पर व्याप्त तनाव एक अभूतपूर्व स्थिति है, जिसका समाधान 70 दिनों से भी अधिक समय के बाद निकाला जा सका था। ऐसी संभावना है कि गलवान घाटी में तनावपूर्ण स्थिति एक लंबे समय तक चल सकती है, क्योंकि यहां 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए हैं।
इसके अलावा, विचलित करने वाली बात यह है कि चीन द्वारा 15 जून को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर घातक हमला किए जाने के बाद अधिकारियों सहित 10 भारतीय सैनिकों को चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तीन दिनों तक अपनी कैद में रखा। भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठानों में इसे लेकर भी काफी रोष व्याप्त है, क्योंकि बाद में पता चला कि लेफ्टिनेंट कर्नल और मेजर रैंक के दो अधिकारियों सहित कुल 10 भारतीय सेना के जवान तीन दिनों तक चीनी सेना की कैद में थे और इन्हें गुरुवार शाम को ही रिहा किया गया है।
गश्त बिंदु (पैट्रोलिंग प्वाइंट) नंबर-14 पर 15 जून की रात भारतीय सैनिकों पर हुए बर्बर हमले ने निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच तनाव कम करने की गुंजाइश कम कर दी है। चीन ने पूर्वी लद्दाख में चार स्थानों पर यथास्थिति बदली है, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई है। चार जगहों पर दोनों सेनाएं आमने-सामने हैं। इनमें पैंगॉन्ग झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर फोर, गलवान घाटी के पास गश्त बिंदु-14, गश्त बिंदु-15 और गश्त बिंदु-17 ए शामिल है।
इन चार बिंदुओं पर, सेना की निगरानी में कई गुना वृद्धि हुई है, क्योंकि चीन ने यथास्थिति को बदल दिया है। भारत द्वारा सैनिकों के आसान आवागमन के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास अपने क्षेत्र में सड़क निर्माण शुरू करने के बाद चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम देने शुरू कर दिया था। भारतीय सैनिकों पर 15 जून को गलवान घाटी पर किया गया हमला एकमात्र घटना नहीं थी। चीनी पीएलए द्वारा अप्रमाणित आक्रमण पांच मई से शुरू हुआ और कुछ अंतरालों पर होता रहा, जिसके बाद 15 जून की रात बर्बर हमला हुआ, जिसमें 76 सैनिक घायल हुए और 20 शहीद हो गए।
भारतीय सैनिकों ने 1975 के बाद से चीनी पीएलए के साथ संघर्ष में सबसे अधिक संख्या में शहादत दी है। इससे पहले 1975 में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय गश्ती दल पर अरुणाचल प्रदेश में घात लगाकर हमला किया गया था। सूत्रों ने बुधवार को कहा कि जब सोमवार की रात झड़प हुई तब भारतीय सैनिकों की संख्या चीनी सैनिकों की तुलना में काफी कम थी, मगर फिर भी भारतीय पक्ष ने पीएलए से लड़ने का फैसला किया। भारतीय सैनिकों की संख्या चीनी सैनिकों की अपेक्षा 1:5 अनुपात में थी।
यह भी बताया जा रहा है कि चीन ने भारतीय सैनिकों का पता लगाने के लिए थर्मल इमेजिंग ड्रोन का भी इस्तेमाल किया था। सरकारी सूत्रों ने कहा, हमारी याद में यह चीनी सेना द्वारा भारतीय सेना के जवानों पर किया गया सबसे घातक हमला था। सूत्रों ने बताया कि हमले में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू यह देखने के लिए गए थे कि चीनी सैनिक स्टैंड-ऑफ स्थिति से हट गए हैं या नहीं। क्योंकि ऐसा करने का उनकी ओर से वादा किया गया था। मगर संतोष बाबू उक्त स्थान पर पहुंचे तो वे वहां लगा शिविर देखकर आश्चर्यचकित थे। जबकि पीएलए के सैनिक उग्र हो उठे।
चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर बेरहमी से हमला कर दिया। भारतीय सेना ने कहा कि भारतीय सैनिक उस स्थान पर गए थे, जहां तनाव हुआ था। भारतीय जवान वहां बिना किसी दुश्मनी के चीनी पक्ष के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार के साथ केवल यह जांचने के लिए गए थे कि क्या वे वादे के अनुसार डी-एस्केलेशन समझौते का पालन कर रहे हैं या नहीं। भारतीय सेना के अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, लेकिन वे फंस गए और उन पर विशुद्ध रूप से बर्बर हमला किया गया। उन्होंने भारतीय सैनिकों पर हमला करने के लिए सभी तरह के कंटीले तारों और पत्थरों का इस्तेमाल किया।