पश्चिम बंगाल की ममता सरकार और केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के बीच घमासान जारी है। ममता सीबीआई के जरिए केंद्र पर तानाशाही का आरोप लगा रही हैं वहीं केंद्र घोटाले के पीछे सत्तारूढ़ टीएमसी को मुख्य आरोपी मान रही है। वास्तव में इस पूरे घटनाक्रम का केंद्र राज्य का सबसे चर्चित सारदा चिटफंड घोटाला है। सीबीआई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मामले की जांच कर रही है। इसी सीबीआई की टीम को कोलकाता पुलिस ने कल हिरासत में ले लिया। आइए जानते हैं क्या है यह पूरा मामला-
करीब 20 हजार करोड़ के हैं दो घोटाले
वास्तव में इस विवाद की पृष्ठभूमि में दो बड़े घोटाले हैं। पहला है सारदा स्कैम जिसमें करीब 2500 करोड़ रुपए के हेरफेर का आरोप है। वहीं दूसरा घोटाला रोज वैली स्कैम का है। इसमें करीब 17,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के गबन का आरोप है। जांच से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, दोनों ही मामलों में आरोपियों के कथित तौर पर सत्ताधारी टीएमसी से लिंक पाए गए हैं। इन दोनों ही चिटफंड घोटालों की जांच सीबीआई कर रही है। इस मामले में बीती 11 जनवरी को सीबीआई ने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया।
टीमएमसी के दो सांसद हुए हैं गिरफ्तार
रोज वैली ग्रुप चिटफंड घोटाले में अभी तक दो बड़ी कार्रवाई हो चुकी हैं। इस मामले में कथित तौर पर शामिल होने के आरोप में टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय और तापस पॉल को सीबीआई गिरफ्तार कर चुकी है। सीबीआई ने रोज वैली के अध्यक्ष गौतम कुंदू और तीन अन्य पर आरोप लगाया था कि उन्होंने देशभर में निवेशकों को 17,000 करोड़ रुपये की चपत लगाई है। वहीं सारदा के चेयरमैन सुदीप्त सेन हैं। सेन पर आरोप है कि उन्होंने कथित फ्रॉड करके फंड का गलत इस्तेमाल किया।
कैसे हुआ घोटाला
बताया जाता है कि इन चिटफंड कंपनियों ने निवेशकों को आकर्षक ब्याज का लालच दिया। मैच्योरिटी के बाद जब जमाकर्ता अपना रिटर्न लेने पहुंचे तो कंपनियों ने पैसे देने से मना कर दिया। आखिरकार इन कंपनियों ने अपनी दुकानों और दफ्तरों को बंद कर दिया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में इन मामलों को जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया था।
तीन स्कीमों में उलझे निवेशक
जांच रिपोर्ट के मुताबिक, सारदा ग्रुप की चार कंपनियों का इस्तेमाल तीन स्कीमों के जरिए पैसा इधर-उधर करने में किया गया। ये तीन स्कीम थीं- फिक्स्ड डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉजिट और मंथली इनकम डिपॉजिट। इन स्कीम के जरिए भोले भाले जमाकर्ताओं को लुभाने की कोशिश हुई और उनसे वादा किया गया कि बदले में जो इनसेंटिव मिलेगा वो प्रॉपर्टी या फॉरेन टूर के रूप में होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 से 2012 की ग्रुप की समरी रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि ग्रुप की चार कंपनियों ने अपनी पॉलिसियां जारी करके 2459 करोड़ रुपये को ठिकाने लगाया है।