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क्या होता है महाभियोग या Impeachment Motion?

बता दें कि कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सेन स्वतंत्र भारत के ऐसे पहले न्यायाधीश थे जिन्हें महाभियोग प्रस्ताव लाकर हटाया गया। सेन पर वित्तीय अनियमितताएं करने का आरोप था। जांच में सेन को दोषी पाया गया जिसके बाद उनके खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग चलाया गया।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : April 20, 2018 14:06 IST
Know what is Impeachment Motion?
क्या होता है महाभियोग या Impeachment Motion?  

नई दिल्ली: कांग्रेस और 7 अन्य दलों के नेताओं ने उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू से मुलाकात कर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का नोटिस सौंपा है। कांग्रेस ने बताया कि इस नोटिस को 7 विपक्षी पार्टियों का समर्थन हासिल है और इसपर 71 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और मुस्लिम लीग ने हस्ताक्षर किए।

गौरतलब है कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग यानी ''इमपीचमेंट' शब्द का लैटिन भाषा में अर्थ है पकड़ा जाना। इस शब्द की जड़ें भले ही लैटिन भाषा से निकलती हों, परंतु इस वैधानिक प्रक्रिया की शुरू आत ब्रिटेन से मानी जाती है। यहां 14वीं सदी के उत्तरार्ध में महाभियोग का प्रावधान किया गया था

संविधान के अनुच्छेद 124(4)127 में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट के जज को हटाए जाने का प्रावधान है। महाभियोग के जरिए हटाए जाने की प्रक्रिया का निर्धारण जज इन्क्वायरी एक्ट 1968 द्वारा किया जाता है।

1. किसी जज को हटाए जाने के लिए जरूरी महाभियोग की शुरुआत लोकसभा के 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों के सहमति वाले प्रस्ताव से की जा सकती है। ये सदस्य संबंधित सदन के

पीठासीन अधिकारी को जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की अपनी मांग का नोटिस दे सकते हैं।

2. प्रस्ताव पारित होने के बाद संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा तीन जजों की एक समिति का गठन किया जाता है। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीश और एक कानूनविद को शामिल किया जाता है। यह तीन सदस्यीय समिति संबंधित जज पर लगे आरोपों की जांच करती है।

3. जांच पूरी करने के बाद यह समिति अपनी रिपोर्ट पीठासीन अधिकारी को सौंपती है। आरोपी जज जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है, को भी अपने बचाव का मौका दिया जाता है।

4. पीठासीन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की गई जांच रिपोर्ट में अगर आरोपी जज पर लगाए गए दोष सिद्ध हो रहे हैं तो पीठासीन अधिकारी मामले में बहस के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए सदन में वोट कराते हैं।

5. किसी जज को तभी महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है जब संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई मतों (उपस्थिति और वोटिंग) से यह प्रस्ताव पारित हो जाए।

बता दें कि कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सेन स्वतंत्र भारत के ऐसे पहले न्यायाधीश थे जिन्हें महाभियोग प्रस्ताव लाकर हटाया गया। सेन पर वित्तीय अनियमितताएं करने का आरोप था। जांच में सेन को दोषी पाया गया जिसके बाद उनके खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग चलाया गया। साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने सेन के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था।

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