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एक क्लिक में जानिए क्या है SC/ST एक्ट, किस बात से नाराज है दलित संगठन

आज देशभर में दलित संगठन एससीएसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: April 02, 2018 12:57 IST
कोर्ट के फैसले के...- India TV Hindi
कोर्ट के फैसले के खिलाफ पूरे देश में दलित सड़कों पर उतरे हुए हैं।

नई दिल्ली: पूरे देश में सुप्रीम कोर्ट के एससीएसटी एक्ट में सुनाए गए फैसले के खिलाफ आंदोलन चल रहा है। दलित संगठनों द्वारा बुलाए गए बंद के कारण देश में जगह जगह से हिंसा की खबरें सामने आ रही है। कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने दलित संगठनों द्वारा बुलाए गए बंद का समर्थन किया है। एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट एससीएसटी कानून के तरह तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा चुका है तो वहीं सरकार ने इसके खिलाप रिव्यू पिटिशन भी दायर कर दिया है।

क्या था पुराना कानून

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था। जिसके बाद 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। ये कानून यह अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों के सजा तय करता है। साथ ही पीड़ित को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है। जरूरत पड़ने पर इस कानून के तहत विशेष अदालतों की भी व्यवस्था की जा सकती है।

इस कानून के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विरुद्ध होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है। किसी भी अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति को जबरन अखाद्य पदार्थ (मल, मूत्र इत्यादि) खिलाना या उनका सामाजिक बहिष्कार करना इस कानून के तहत अपराध माना गया है। इस कानून के तहत पीड़ित की लिखित शिकायत पर उसका हस्ताक्षर लेने से पहले पुलिस को उसके बयान को पढ़ कर सुनाना होगा। एफआईआर दर्ज करने के 6० दिन के अन्दर अपराध की जांच करना और चार्जशीट/ आरोप पत्र पेश करना होगा। दस्तावेज तैयार करना और दस्तावेजों का सटीक अनुवाद करना होगा। साथ ही पुलिस के पास केस दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी करने का प्रावधान भी है। इस कानून के तहत अग्रिम जमानत पर रोक थी साथ ही जमानत सिर्फ हाई कोर्ट से हो सकती थी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा

पिछले दिनों महाराष्ट्र के एक केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट 1989 में सीधे गिरफ्तारी पर रोक लगाने का फैसला किया था। कोर्ट ने कहा था कि SC/ST एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ्तारी की जगह 7 दिन की शुरुआती जांच हो। शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। गैर-सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी की मंजूरी जरूरी होगी। कोर्ट ने कहा था, "केस दर्ज करने से पहले डीएसपी स्तर का अधिकारी पूरे मामले की प्रारंभिक जांच करेगा और साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि कुछ मामलों में आरोपी को अग्रिम ज़मानत भी मिल सकती है" 

क्या है दलित संगठनों की मांग

 
दलित और आदिवासी संगठनों की दलील है कि कोर्ट के इस फैसले से ये कानून कमज़ोर होगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में संशोधन किए जाने के विरोध में कई सामाजिक संगठन सामाने आ गए हैं। संशोधन को समाप्त कर एक्ट को पहले की भांति रखने की मांग की जा रही है। 

फैसले के बाद मच गया बवाल

कोर्ट के इस फैसले के बाद पूरे देश में हंगामा मच गया। जहां एक तरफ विपक्ष ने सरकार को दलित विरोधी बताते हुए कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से ना उठाने का आरोप लगाया तो वहीं दलित संगठन इस फैसले के खिलाफ लामबंद हो गए। दलित संगठनों का कहना है कि इस फैसले से 1989 का अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम कमजोर पड़ जाएगा। इस ऐक्ट के सेक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। ऐसे में यह छूट दी जाती है तो फिर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा। इसके अलावा सरकारी अफसरों के खिलाफ केस में अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी देने के प्रावधान से भी दलित संगठन नाखुश हैं। 

बैकफुट पर सरकार

कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष के हमलावर होने से सरकार बैकफुट पर है। खुद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं। सरकार ने साफ कहा है कि हमने रिव्यू पिटीशन दायर कर दिया है। ये रिव्यू पिटीशन सरकार की तरफ से कोर्ट में सीनियर वकील पेश करेंगे। एनडीए के दलित और पिछड़े वर्ग से आने वाले जनप्रतिनिधियों ने भी मोदी सरकार से रिव्यू पिटिशन दाखिल करने की मांग की थी। इसके अलावा एनडीए के कुछ सहयोगी दल भी सरकार से इस मामले में नाखुश नजर आ रहे हैं।

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