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14 साल पहले आज के दिन वीरप्पन का हुआ था खात्मा, 150 से ज्यादा लोगों को मार चुका था

90 के दशक में दक्षिण भारत में आतंक का पर्याय बन चुके वीरप्पन को मरे हुए आज 14 साल हो गए है

Written by: India TV News Desk
Updated on: October 18, 2018 12:40 IST
Know how Veerappan was killed by security forces- India TV Hindi
Know how Veerappan was killed by security forces

नई दिल्ली। 90 के दशक में दक्षिण भारत में आतंक का पर्याय बन चुके वीरप्पन को मरे हुए आज 14 साल हो गए है। साल 2004 का 18 अक्टूबर का दिन था जब दस्यु सरगना और चंदन के कुख्यात तस्कर वीरप्पन को सुरक्षा बलों ने एक मुठभेड़ में मौत के घाट उतारकर चैन की सांस ली थी। घनी मूछों वाला वीरप्पन कई दशकों तक सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द बना रहा। हाथीदांत के लिए सैकड़ों हाथियों की जान लेने वाले और करोड़ों रूपए के चंदन की तस्करी करने वाले वीरप्पन ने डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की जान ली और इनमें आधे से ज्यादा पुलिसकर्मी थे। 

अपनी बेटी तक को मारने का आरोप

वीरप्पन के बारे में कहा जाता है कि वह इतना खूंखार था कि अपनी जान बचाने के लिए उसने अपनी बेटी तक को मार दिया था। वीरप्पन पर किताब लिख चुके विजय कुमार ने पिछले साल मीडिया को बताया था कि 1993 में वीरप्पन की एक बेटी पैदा हुई थी, जंगल में बच्चे के रोने की आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती है और इस वजह से वीरप्पन एक बार अपनी बेटी के रोने की आवज से मुसीबत में फंस गया था, ऐसा कहा जाता है कि वीरप्पन ने अपनी बेटी को मारने का फैसला कर लिया था। वीरप्पन के खिलाफ अभियान चला रहे सुरक्षाबलों को 1993 में कर्नाटक में समतल जमीन पर कुछ उभार दिखा, जब उस उभार को खोदा गया तो उसमें एक नवजात बच्ची का शव मिला था।

वीरप्पन को फंसाने में ऐसे मिली मदद

वीरप्पन को ठिकाने लगाने के लिए सुरक्षा बलों ने बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखे थे, वीरप्पन को मारने वाले ऑपरेशन में शामिल रहे अधिकारियों ने मीडिया को बताया था कि वीरप्पन के खिलाफ अंतिम अभियान से पहले सुरक्षा बलों ने सतर्कता के साथ प्लानिंक की थी। वीरप्पन को बाहरी दुनिया में अपने वीडियो टेप भेजने का काफी शौक था और एक ऐसे ही वीडियों में सुरक्षा बलों ने पाया कि वीरप्पन को एक कागज को पढ़ने में दिक्कत हो रही थी। इससे साफ जाहिर हो गया था कि वीरप्पन की आंखों में खराबी है।

सुरक्षाबलों ने ऐसे बिछाया था जाल

इसके बार वीरप्पन के खिलाफ ऑपरेशन शुरू करने की तैयारी की गई, सुरक्षा बलों ने बड़ी टीम न  बनाकर छोटी-छोटी टीमें बनाई क्योंकि कई बार बड़ी टीम होने पर उसके लिए बाहर से राशन खरीदना पड़ता था और वीरप्पन को भनक लग जाती थी कि उसके खिलाफ कुछ कार्रवाई की तैयारी हो रही है। सुरक्षा बलों ने अपने खूफिया तंत्र की मदद से वीरप्पन को आंख के इलाज के लिए जंगल से बाहर आने के लिए मजबूर करने की प्लानिंग की और इसमें वे कामयाब भी हुए। उस समय खूफिया तंत्र इतना मजबूत था कि जिस एंबुलेंस में वीरप्पन जंगल से बाहर आया उसका ड्राइवर और सहायक भी सुरक्षाबल का आदमी था। वीरप्पन को जंगल से बाहर लाते ही सुरक्षा बलों ने उसे घेर लिया और सरेंडर के लिए कहा, लेकिन उसने फायरिंग शुरू कर दी और सुरक्षा बलों की जवाबी फायरिंग में वह मारा गया।

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