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जानें, संसद से सड़क तक बहस का मुद्दा बन चुके ट्रिपल तलाक के बारे में

देश की सियासत में एक बार फिर से ट्रिपल तलाक का मुद्दा छाया हुआ है। इस मुद्दे पर संसद से लेकर सड़क तक बहस भी हो रही है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: December 27, 2018 14:30 IST
Representational Image | PTI- India TV Hindi
Representational Image | PTI

नई दिल्ली: देश की सियासत में एक बार फिर से ट्रिपल तलाक का मुद्दा छाया हुआ है। इस मुद्दे पर संसद से लेकर सड़क तक बहस भी हो रही है। तीन तलाक को दंडात्मक अपराध घोषित करने वाला एक विधेयक गत 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था। यह तीन तलाक से संबंधित अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है। हालांकि इन सारी बहसों के बीच एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर यह ट्रिपल तलाक है क्या जिसे लेकर इतना हंगामा बरपा हुआ है। आइए, जानते हैं:

क्या है ट्रिपल तलाक?

एक बार में तीन बार तलाक कहने को तलाक-ए-बिद्दत कहते हैं जिसके तहत लिखकर, फोन से ट्रिपल तलाक देते थे। कई महिलाओं को लेटर, व्हाट्सएप मैसेज से तलाक दिया गया। अगर पुरुष तलाक का फैसला बदलना चाहे तो नहीं कर सकता लेकिन तलाकशुदा जोड़ा फिर हलाला के बाद ही शादी कर सकता था।

ट्रिपल तलाक पर नए कानून में क्या है?
ट्रिपल तलाक पर बिल का नाम-मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट है। यह कानून तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होगा जिसके तहत मुस्लिम पुरुष एक साथ ट्रिपल तलाक नहीं दे पाएंगे। इसमें मैसेज के जरिए, फोन और चिट्ठी से भी ट्रिपल तलाक अवैध होगा। ट्रिपल तलाक पर कानून का उल्लंघन करने पर 3 साल की सजा का प्रावधान है। कुछ दलों के विरोध के मद्देनजर सरकार ने जमानत के प्रावधान सहित कुछ संशोधनों को मंजूरी प्रदान की थी ताकि राजनीतिक दलों में विधेयक को लेकर स्वीकार्यकता बढ़ सके।

इन देशों में ट्रिपल तलाक पर बैन
भारत, पाकिस्तान, ईरान, ब्रुनेई, मोरक्को, कतर, यूएई, ट्यूनीशिया, मलेशिया का सारावाक राज्य, इंडोनेशिया, मलेशिया, मिस्र, सूडान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इराक, सीरिया, साइप्रस, तुर्की, जॉर्डन, अल्जीरिया, और सऊदी अरब में ट्रिपल तलाक पर बैन है।

शाहबानो के तलाक से शुरू हुआ विरोध
62 साल की शाहबानो को 1978 में उसके पति ने तलाक दे दिया। शाहबानो ने गुजारे भत्ते के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में शाहबानो के हक में फैसला दिया। पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध के चलते 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून पास कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था।

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