नई दिल्ली: एक बार में तीन बार तलाक कहने को तलाक-ए-बिद्दत कहते हैं जिसके तहत लिखकर, फोन से ट्रिपल तलाक देते थे। कई महिलाओं को लेटर, व्हाट्सएप मैसेज से तलाक दिया गया। अगर पुरुष तलाक का फैसला बदलना चाहे तो नहीं कर सकता लेकिन तलाकशुदा जोड़ा फिर हलाला के बाद ही शादी कर सकता था। तलाक के बाद लड़की अपने मायके वापस आती है और इद्दत के तीन महीने 10 दिन बिना किसी पराए आदमी के सामने आए पूरा करती है। फिर इद्दत का वक्त पूरा होने पर वो लड़की आजाद है। अब उसकी मर्जी है वो चाहे किसी से भी शादी करे।
बता दें कि तीन तलाक को औरतों के खिलाफ माना जाता है, क्योंकि इससे जुड़े सारे प्रावधान कहीं न कहीं औरतों के शोषण में शामिल लगते हैं। तीन तलाक जिस तरह से आज मुस्लिम समुदाय में चलन में है, इसका कोई भी जिक्र कुरान और हदीस में नहीं मिलता फिर भी जनमानस में लंबे समय से चलते आने के कारण ये एक बड़ा ही पेचीदा मसला बन गया है।
ट्रिपल तलाक के मामले से जुड़े शब्द 'हलाला, हुल्ला, मुहल्लिल, इद्दत और ख़ुला' भी कम उलझाने वाले नहीं हैं। आइए जानते हैं क्या है इन शब्दों का मतलब-
क्या है इद्दत और हलाला?
तलाक के बाद लड़की अपने मायके वापस आती है और इद्दत के तीन महीने 10 दिन बिना किसी पराए आदमी के सामने आए पूरा करती है, ताकि अगर लड़की प्रेग्नेंट हो तो ये बात सभी के सामने आ जाए, जिससे उस औरत के 'चरित्र' पर कोई उंगली न उठा सके। उसके बच्चे को ‘नाजायज़’ न कहा जा सके। इसके पीछे भी समाज की पुरुषवादी मानसिकता ही है, क्योंकि धर्म चाहे कोई भी हो, समाज में लड़की ही अपनी छाती से लेकर गर्भ तक परिवार की इज्जत की ठेकेदार होती है।
हलाला, यानी 'निकाह हलाला'। शरिया के मुताबिक, अगर एक पुरुष ने औरत को तलाक दे दिया है तो वो उसी औरत से दोबारा तब तक शादी नहीं कर सकता जब तक औरत किसी दूसरे पुरुष से शादी कर तलाक न ले ले। औरत की दूसरी शादी को 'निकाह हलाला' कहते हैं। इसके बेहद बचकाना कारण दिए जाते हैं। कहा जाता है कि औरत के दूसरे मर्द से शादी करने और संबंध बनाने से उसके पहले पति को दुख पहुंचता है और अपनी गलती का एहसास होता है। हालांकि इस प्रथा की आड़ में कई बार औरत की जबरदस्ती दूसरी शादी कर उसके साथ रेप करवा दिया जाता है, ताकि उस औरत से फिर से पहला पति शादी कर सके। ऐसे कई मामले पिछले कुछ समय में सामने आए हैं।
इस्लाम में असल हलाला का मतलब ये होता है कि एक तलाकशुदा औरत अपनी मर्जी से किसी दूसरे मर्द से शादी करे। इत्तफाक से अगर उनका रिश्ता निभ न पाए और दूसरा शौहर भी उसे तलाक दे-दे या मर जाए तब ऐसी स्थिति में वो पहले पति से फिर निकाह कर सकती है। ये असल इस्लामिक हलाला है लेकिन इसमें अपनी सहूलियत के हिसाब से काज़ी-मौलवी के साथ मिलकर लोग प्रयोग करते रहे हैं और इसी की एक उपज है- हुल्ला।
क्या है 'हुल्ला'?
अक्सर ये होता है कि तीन तलाक की आसानी के चलते मर्द अक्सर बिना सोचे-समझे तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोल देते हैं और बाद में जब उन्हें गलती का एहसास होता है तो वे अपना संबंध फिर उसी औरत से जोड़ना चाहते हैं। ऐसे में ये परिस्थिति अक्सर देखने को मिल जाती है पर फिर से संबंध जोड़ने से पहले निकाह हलाला जरूरी होता है। वैसे इस्लाम के हिसाब से भी जानबूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इसलिए तलाक लेना ताकि पहले शौहर से निकाह जायज हो सके यह साजिश नाजायज़ है।
हालांकि इन सबका इंतजाम भी है, क्योंकि इसका एक पहलू ये भी है कि अगर मौलवी हलाला मान ले तो समझे हलाला हो गया इसलिए मौलवी को मिलाकर किसी ऐसे इंसान को तय कर लिया जाता है, जो निकाह के साथ ही औरत को तलाक दे देगा। इस प्रक्रिया को ही हुल्ला कहते हैं यानी हलाला होने की पूरी प्रक्रिया ही 'हुल्ला' कहलाती है।
तहलीली यानी निकाह के साथ 'तलाक'
वो इंसान जो 'हुल्ला' यानि औरत के साथ शादी करके बिना संबंध स्थापित किए तलाक दे देने के लिए राजी होता है उसे तहलीली कहा जाता है। ये निकाह के साथ ही औरत को तलाक दे देता है ताकि वो अपने पहले शौहर से शादी कर सके। शरिया के मुताबिक अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शौहर से तलाक मांगना होगा, क्योंकि वो खुद तलाक नहीं दे सकती।
अगर शौहर तलाक मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे। इस्लाम ने काज़ी को यह हक दे रखा है कि वो उनका रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनका तलाक हो जाएगा और इसे ही 'ख़ुला' कहा जाता है।