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फिर चर्चा में आई शहीद पुलिसकर्मी की बेटी जोहरा, पिता के लिए कही ये इमोशनल बात

पिछले साल पिता के अंतिम संस्कार के दौरान रोती हुई जोहरा की भावुक तस्वीर सोशल मीडिया पर छा गई थी

Edited by: India TV News Desk
Published on: September 09, 2018 16:30 IST
Zohra- India TV Hindi
Zohra

श्रीनगर: पिछले साल पिता के अंतिम संस्कार के दौरान रोती हुई जोहरा की भावुक तस्वीर सोशल मीडिया पर छा गई थी और अब एक साल बाद आठ वर्षीय इस बच्ची का कहना है, ‘‘इस बार, मैं पापा को जाने नहीं दूंगी।’’ उसके घर वालों ने उसे (झूठा) दिलासा दिया है कि उसके पिता एक दिन लौटेंगे।

पिछले साल 28 अगस्त को जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर पुलिस के सहायक उप-निरीक्षक अब्दुल रशीद शाह की पिछले साल हत्या कर दी थी। उनके पेट में गोली लगी थी और वह शहीद हो गए थे। हमले के समय वह निहत्थे थे। शाह की बड़ी बेटी बिल्किस ने कहा, ‘‘वह (जोहरा) पूछती रहती है कि उसके पिता कहां गए हैं। वह गमगीन थी। हमें आखिरकार उसे दिलासा देना पड़ा कि वह हज पर गए हैं और शीघ्र लौटेंगे। जोहरा के चेहरे पर मुस्कान लौटाने में मुझे और मेरी अम्मी नसीमा को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी।’’

जोहरा अपनी बड़ी बहन की बातों से संतुष्ट नजर आई लेकिन उसने बोला, ‘‘इस बार, मैं पापा को जाने नहीं दूंगी।’’ जोहरा खिलौने से खेलती है और उसकी बहन परिवार के अच्छे दिनों की तस्वीरें दिखाती है। जब जोहरा से कोई पूछता है तो वह किसे सबसे ज्यादा प्यार करती है तो वह चहककर कहती है, ‘पापा’। और बिल्किस उसे अपने गले से लगा लेती है। पिता के अंतिम संस्कार के समय रोती हुई जोहरा की तस्वीर सोशल मीडिया पर फैली थी और लोगों ने अपनी सहानुभूति प्रकट की थी। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था, ‘‘हम इस बच्ची जोहरा के अश्रूपूरित चेहरे को बर्दाश्त नहीं कर सकते।’’

इस परिवार और शाह की दूसरी पत्नी शगुफ्ता के लिए पिछला एक साल बड़ी मुश्किलों से भरा रहा है। पुलिस विभाग से कोई राहत नहीं मिलने से उनके लिए चीजें बड़ी मुश्किल भरी हो गईं। पीटीआई भाषा द्वारा संपर्क किए जाने पर पुलिस अधिकारियों ने कहा कि विभाग तैयार है लेकिन दोनों पत्नियों - नसीमा और शगुफ्ता को आपस में समझौता करना होगा।

दक्षिण कश्मीर में काजीगुंड के रहने वाले शाह ने अपनी पहली पत्नी को छोड़कर शगुफ्ता से शादी कर ली थी। हालांकि, अदालत में नसीमा को तलाक देने संबंधी शाह का दावा साबित नहीं हो पाया और तब आदेश दिया गया था कि नसीमा को 10,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भुगतान किया जाए। शाह की मौत के बाद वह पैसा आना बंद हो गया। बिल्किस कहती है, ‘‘हमारी देखभाल हमारे मामा कर रहे हैं।’’

संपर्क करने पर शगुफ्ता भी कहती है कि उसे भी अपनी जिंदगी चलाने के लिए दर दर की ठोकर खानी पड़ रही है। उसने कहा, ‘‘चार साल की बच्ची के साथ घर चलाना बड़ा मुश्किल है।’’ एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि शाह के मुआवजे पर निर्णय लिए जाने से पहले कानूनी लड़ाई में थोड़ा वक्त लग सकता है और पुलिस अधिकारी दोनों ही परिवार को यथाशीघ्र समझौते पर पहुंच जाने के लिए राजी करने में जुटे हैं।

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