नई दिल्ली। केंद्र सरकार और किसान यूनियनों के बीच हाल ही में लागू तीन कृषि कानूनों को लेकर जंग जारी है। किसान कानून वापसी को लेकर अड़े हुए हैं और सरकार संशोधन का प्रस्ताव दे रही है। इस बीच कृषि कानून का मसला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। भारतीय किसान यूनियन के भानु गुट की ओर से इन कानूनों को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है। किसान यूनियन ने कानूनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप आवेदन दिया है। कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हजारों किसान दो सप्ताह से भी अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसान यूनियन के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह की ओर से याचिका दायर की गई है। यह याचिका द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) की राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा की ओर से पहले से ही दायर याचिका पर हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए दायर की गई है। इसमें केंद्र सरकार की ओर से तीन नए कृषि कानूनों- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020 को रद्द करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया, "ये अधिनियम 'अवैध और मनमाने' हैं। इनसे कृषि उत्पादन के गुटबंदी और व्यावसायीकरण के लिए मार्ग प्रशस्त होगा।" याचिकाकर्ता ने कहा है कि कानून असंवैधानिक हैं, क्योंकि किसानों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कॉर्पोरेट लालच की दया पर रखा जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि कृषि कानून के मसले पर पुरानी याचिकाओं को सुना जाए। इसमें कहा गया है कि नए कानून देश के कृषि क्षेत्र को निजीकरण की ओर धकेलेंगे।
याचिका में कहा गया है, "ये कानून कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) प्रणाली को खत्म कर देंगे, जिसका उद्देश्य कृषि उत्पादों के उचित मूल्य सुनिश्चित करना है।" याचिका में कहा गया है कि ये कानून जल्दबाजी में पारित किए गए हैं। याचिका में कहा गया है कि किसान वास्तव में डर रहे हैं कि वे कॉर्पोरेट घराने के भरोसे रह जाएंगे। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सांसद मनोज झा, द्रमुक राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा और छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के राकेश वैष्णव की ओर से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया था।