अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर खुशबू रावल का स्पेशल ब्लॉग-
आज मैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के माध्यम से उन हजारों लड़कियों की जिंदगी से जुड़ी उनकी कहानी और आकांक्षाओं को शेयर कर रही हूं। मैं उस जगह से हूं जहां बेटियों की स्कूल की पढ़ाई के बाद ही शादी कर देने की परंपरा रही है लेकिन वक्त के साथ चीजें बदल रही हैं। लड़कियों की जिंदगी में शिक्षा के माध्यम से उजाला फैल रहा है और वो सपनों को पंख देते हुए अपनी जिंदगी को संवार रही हैं।
मेरी भी छोटी सी इच्छा थी कुछ करने की, कुछ बनने की। अपने दम पर अपना मुकाम हासिल करना चाहती थी। मैं शब्दों के संसार को अपनी ताकत बनाना चाहती थी इसलिए मैंने पत्रकार बनने का फैसला किया। जब मैंने यह बात अपने पापा से शेयर की तो उन्होंने कहा कि हमारे पूरे खानदान में से इस क्षेत्र में कोई नहीं गया। फिर पढ़ने के लिए दूसरे शहर जाना और उसके बाद नौकरी के लिए शहर बदलना...इस तरह की उनके दिमाग में कई बातें उस वक्त चल रही थीं।
कुछ सोचते हुए वो चुप हो गए इसके कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे कहा, ‘सिविल सेवा में जाना तुम्हारे लिए बेहतर रहेगा।’ पहले मैंने उनकी बातों को ध्यान से सुना और फिर कहा, ‘मैं आपकी भावनाओं और इच्छाओं को समझ सकती हूं और उसका सम्मान करती हूं लेकिन मैं शब्दों के संसार को अपनी पहचान बनाना चाहती हूं। मैं खुशबू रावल के नाम से उस दुनिया में जाना चाहती हूं जहां हमारे खानदान से कोई नहीं हैं।’
लड़की होने का मतलब कमजोर होना नहीं होता। उस समय तो उन्होंने खामोशी से सुना लेकिन 2 दिन बाद घर में चर्चा के बाद मझे मेरी दुनिया चुनने की आजादी मिल गई। ऐसा लगा मानो मेरे सपनो को पंख लग गए। अपने बहन-भाई में सबसे बड़ी होने के चलते मेरे परिवार में माता-पिता का प्यार मुझे हमेशा मिला। पापा की छोटी सी चिड़िया बड़े होने के साथ अपने सपने बुनने लगी थी और एनआईआईएलएम यूनिवर्सिटी में प्रवेश मिलने के बाद तो मेरी छोटी सी दुनिया बदल गई, अब मेरे सामने था सारा आकाश और मैं जिंदगी के सपनो को सच करने के लिए कदम बढ़ा चुकी थी।
स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के बाद आज मैं एक पत्रकार के तौर पर कदम बढ़ा चुकी हूं। पीछे पलटकर देखती हूं तो विश्वास नहीं होता कि राजस्थान के सिरोही जिले के कालन्द्री जैसे छोटे से कस्बे से निकलकर मैं यहां तक पहुंच गई हूं, लेकिन ऐसा हुआ है तो इसके लिए मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे पापा रहे हैं जिन्होंने हर कदम पर मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उस वक्त भी जब मां और दादा जी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी घर से दूर जाकर पढ़ाई करे। राजस्थान के गांवों में बेटियों को स्कूल की पढ़ाई के बाद ही विवाह कर देने की परंपरा जो रही है।
ईश्वर का शुक्र है मेरे साथ मेरे पापा थे जो चाहते थे कि मैं अपने पैरों पर खड़े होकर कुछ बन सकूं। और आज जब देखती हूं कि मुझे देखकर मेरे गांव की अन्य लड़कियों को भी उनके माता-पिता मेरा उदाहरण देकर अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं तो दिल से खुशी होती है। आज मैं देश के सबसे बड़े टीवी चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हूं। मैं जानती हूं मेरा सफर अभी शुरू हुआ है लेकिन मैं ये सोचकर खुश हूं कि धीरे-धीरे ही सही हम बेटियां अपने घर, अपने गांव और अपने देश को बदल रही हैं।
(ब्लॉग लेखिका खुशबू रावल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)