कोच्चि। यहां एक अदालत ने सोना तस्करी मामले की मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश और सह आरोपी की जमानत याचिका गुरुवार को खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि आरोपियों की तत्काल रिहाई निश्चित रूप से सीमा शुल्क रोकथाम आयुक्तालय की सफलतापूर्वक जांच की प्रगति में बाधा पहुंच सकती है। सुरेश और सइद अलावी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (आर्थिक अपराध) ने कहा कि सीमाशुल्क के तर्क में दम है कि ये याचिकाकर्ता सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं और फरार आरोपी की मदद कर सकते हैं।
अदालत ने यह संज्ञान में लिया कि सुरेश इस मामले में तीसरी आरोपी हैं और 'अत्यंत प्रभावशाली महिला' हैं तथा वाणिज्य दूतावास से इस्तीफे के बाद भी वह तिरुवनंतपुरम में स्थित संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के शीर्ष अधिकारियों की मदद करती रहीं। अदालत ने संज्ञान में लिया, 'इसके अलावा, वह राज्य सरकार की ओर से प्रस्तावित परियोजना में भी नौकरी पाने में सफल रही। मौजूदा रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि सत्ता के गलियारों में उनका बेहद प्रभाव है। महिला सीआरपीसी की धारा 437 के प्रावधानों के तहत लाभ पाने की हकदार नहीं है।'
सुरेश और अलावी ने अपनी याचिकाओं में कहा था कि उनके हिरासत की जरूरत नहीं है क्योंकि जांच का बड़ा हिस्सा पूरा हो चुका है। एनआईए की एक विशेष अदालत ने सोना तस्करी मामले की जांच आतंकी गतिविधि दृष्टिकोण से करने के संबंध में सुरेश की जमानत याचिका सोमवार को खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह सबूत हैं कि उसके खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, उस पर विश्वास करने के पर्याप्त आधार हैं।
क्या है केरल में सोने की तस्करी का मामला
यह पूरा मामला केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में यूएई के पता वाले डिप्लोमैटिक कार्गो से 30 किलो सोना चुराने का है। दावा किया गया था कि कार्गो के संबंध में स्वप्ना सुरेश ने एयरपोर्ट के अधिकारी से संपर्क साधा था। यूएई वाणिज्य दूतावास जनरल ऑफिस के उच्च कूटनीतिज्ञ राशिद खामिस अल शामली के कहने पर कथित तौर पर संपर्क किया गया था। तस्करी किए गए सोने की कीमत 15 करोड़ रुपये बताई गई है।
ये सोना उस कार्गो में छिपाया गया था जिसमें बिस्किट, नूडल्स, बाथरूम का सामान रखा जाता था, लेकिन कस्टम को तस्करी को लेकर पहले से सूचना मिल चुकी थी। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने स्वप्ना सुरेश, फाजिल फरीद और संदीप नायर को इस मामले में आरोपी बनाया है। तीनों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।