नई दिल्ली: दिल्ली सरकार ने अपने स्कूली छात्रों के लिए आज ‘खुशी (हैप्पीनेस) पाठ्यक्रम’ पेश किया। इसके तहत नर्सरी से लेकर आठवीं कक्षा तक की हर क्लास पांच मिनट के ‘ध्यान’ के साथ शुरू होगी। इस अवसर पर तिब्बती आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने कहा कि भारत आधुनिक और प्राचीन ज्ञान को एकजुट कर दुनिया का नेतृत्व कर सकता है तथा यह मानवता की नकारात्मक भावनाओं से उबरने में मदद कर सकता है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने नर्सरी से आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए यह पाठ्यक्रम पेश करते हुए कहा कि पाठ्यक्रम में दिल्ली सरकार के सभी स्कूलों में नर्सरी से लेकर आठवीं कक्षा तक में 45 मिनट का एक ‘हैप्पीनेस’ पीरियड होगा। हर क्लास पांच मिनट के ध्यान के साथ शुरू होगी। दलाई लामा ने खुशी पाठ्यक्रम अपने स्कूलों में शामिल करने के कदम को लेकर दिल्ली सरकार का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि सिर्फ भारत आधुनिक शिक्षा को प्राचीन ज्ञान के साथ जोड़ सकता है। यह मानव भावनाओं को पूरा करने के लिए जरूरी है।
उन्होंने कहा कि यह शारीरिक और मानसिक कल्याण के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। गुस्सा, नफरत और ईर्ष्या जैसी नकारात्मक और विध्वंसकारी भावनाओं के चलते पैदा होने वाले संकट का हल करेगा। दलाई लामा ने देश में प्राचीन भारतीय ज्ञान की पुन: प्राप्ति करने और बौद्ध धर्म का अनुसरण करने वाले देशों सहित दुनिया भर में इसे फैलाने की अपील की। उन्होंने कहा कि प्राचीन ज्ञान को पुन: प्राप्त कर भारत आधुनिक समय का गुरू बन सकता है।
केजरीवाल ने इस अवसर पर मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा क्षेत्र में उनकी सरकार द्वारा शुरू किए गए तीसरे चरण के सुधार के तहत आज ‘खुशी पाठ्यक्रम’ शुरू किया गया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा हमारी शीर्ष प्राथमिकता है। केंद्र और अन्य राज्य सरकारों को एक साल का समय दिया जाना चाहिए और शिक्षा के क्षेत्र में युद्धस्तर पर काम किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव करने की जरूरत है।
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि इस कवायद में 10 लाख छात्र और करीब 50,000 शिक्षक शामिल होने की कल्पना की जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि आतंकवाद, भ्रष्टाचार और प्रदूषण जैसी आज के समय की समस्याओं को स्कूलों और मानव केंद्रित शिक्षा से हल किया जा सकता है।’’ उन्होंने कहा कि इस पाठ्यक्रम को दिल्ली सरकार के 40 शिक्षकों, शिक्षाविदों और स्वयंसेवियों की एक टीम ने छह महीने में तैयार किया है।