अलग-अलग रूपों मे सजे बहुरुपीए। कोई रावण बना हुआ था तो कोई विष्णु का अवतार। रावण के अट्टहास को देख बच्चे भी एक बार को सहम गए। दस सिरों वाले लंकापति रावण का रोब देखने वाला था।
राजस्थान के दूर दराज़ के क्षेत्रों से आए आदिवासियों के नृत्य मे प्रकृति प्रेम दूर से ही झलकता है। शरीर पर पैंट किए, सिर पर मोरपंखी मुकुट पहने यह आदिवासी विभिन्न मुद्राओं से जंगल और वहां के जीवन की मनोरम छटा बिखेर रहे थे। कच्ची घोड़ी यहां का प्रसिद्ध नृत्य है जोकि शादियों के समय में किया जाता है। इस नृत्य का संबंध शेखावटी क्षेत्र से है।