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कश्मीर के गुलमर्ग में दशकों बाद खुला शिव मंदिर, साल 1915 में हुआ था निर्माण

इस मौके पर मीडिया से बातचीत करते हुए मंदिर के केयरटेकर गुलाम मोहम्मद शेख ने कहा कि शिव मंदिर कश्मीर की बहुलवादी संस्कृति और इसकी गौरवशाली विरासत का प्रमाण है। सेना के अधिकारी बीएस फोगाट ने कहा कि कश्मीर की असली खूबसूरती यहां की आवाम है। 

Written by: Manzoor Mir
Published on: June 01, 2021 14:58 IST
Kashmir Shiv mandir opened in gulmarg by Indian army कश्मीर के गुलमर्ग में दशकों बाद खुला शिव मंदिर,- India TV Hindi
Image Source : VIDEO GRAB कश्मीर के गुलमर्ग में दशकों बाद खुला शिव मंदिर, साल 1915 में हुआ था निर्माण

गुलमर्ग. जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग में आज भारतीय सेना ने लोकल प्रशासन और स्थानीय लोगों की मदद के साथ मिलकर दशकों से बंद पड़े ऐतिहासिक शिवमंदिर को फिर से लोगों के लिए खोल दिया। इस मंदिर का निर्माण साल 1915 में महाराजा हरि सिंह की पत्नी महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया ने करवाया था। गुलमर्ग में स्थित इस मंदिर को सेना की बटालियन ने स्थानीय लोगों की मदद से फिर से मरम्मत करके ठीक किया है। मंदिर की ओर जाने वाले रास्तों को भी नया रूप दिया गया और सेना के जवानों ने फिर से रास्तों का सही ढंग से निर्माण किया है।

आज सेना के अधिकारी बीएस फोगाट ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर एकबार फिर से इस मंदिर को खोल दिया। इस मौके पर मीडिया से बातचीत करते हुए मंदिर के केयरटेकर गुलाम मोहम्मद शेख ने कहा कि शिव मंदिर कश्मीर की बहुलवादी संस्कृति और इसकी गौरवशाली विरासत का प्रमाण है। सेना के अधिकारी बीएस फोगाट ने कहा कि कश्मीर की असली खूबसूरती यहां की आवाम है। इस आवाम के अंदर खास बात कश्मीरियत है। अगर यहीं पर नजर दौड़ाएं तो मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा आसपास मिल जाएंगे। ये अपने आप में एक कश्मीरियत की बहुत बेहतरीन मिसाल है। गुलाम मोहम्मद साहब इस मंदिर की 30 साल से देखभाल कर रहे हैं, ये कश्मीरियत की एक बहुत उम्दा मिसाल है।

उन्होंने कहा कि यहां पर पर्यटक बहुत आते हैं, लोकल और बाकी टूरिस्टों की गुजारिश थी कि इस मंदिर की भी देखभाल की जाए, तो गुलमर्ग की शान में चार चांद लगेंगे तो इंडियन आर्मी और यहां के लोकल प्रशासन ने बीड़ा उठाया और इसमें सबसे ज्यादा योगदान यहां के आवाम में सबसे ज्यादा साथ दिया। इसमें हमने थोड़ी बहुत पहल जरूर की हो लेकिन ये हमारी मिलीजुली कोशिशों का नतीजा है। हम यहां से कुछ चीज ले जा सकते हैं तो कश्मीरियत का पैगाम ले जा सकते हैं।

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