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JNU हिंसा: पुलिस को कैंपस में घुसने नहीं दिया या घुसी नहीं?

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में रविवार की हिंसा में अंदर के लोग शामिल थे, या बाहरी लोग? इस सवाल का जबाब दिल्ली पुलिस और उसकी अपराध शाखा तलाशने में जुटी है।

Reported by: IANS
Published on: January 06, 2020 15:54 IST
JNU Campus- India TV Hindi
JNU Campus

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में रविवार की हिंसा में अंदर के लोग शामिल थे, या बाहरी लोग? इस सवाल का जबाब दिल्ली पुलिस और उसकी अपराध शाखा तलाशने में जुटी है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि 'हिंसा से घंटों पहले जेएनयू के आसपास कथित तौर पर मौजूद रहीं दिल्ली पुलिस नियंत्रण कक्ष की तमाम जिप्सियां वक्त रहते कैंपस के अंदर पहुंच कर हालातों को काबू कर पाने में क्यों नाकाम रहीं?' इस सवाल का जवाब कौन तलाशेगा?

जेएनयू के करीब रहने वाली रीना राय ने कहा, "मैं बच्चों को ट्यूशन से लेकर घर लौट रही थी। उस वक्त विश्वविद्यालय की दीवारों और कुछ गेट के आसपास दिल्ली पुलिस की गाड़ियों की भीड़ खड़ी देखी। लगा कि कैंपस में फिर कुछ गड़बड़ हो गई होगी। तभी पुलिस वाले आए होंगे। शाम को टीवी पर देखा कि उस वक्त तक जब मैं बच्चों को लेकर लौट रही थी, हकीकत में जेएनयू में कुछ नहीं हुआ था। मारपीट तो शाम ढले और फिर देर रात तक हुई।"

रीना जैसे और भी कई स्थानीय निवासियों से आईएएनएस ने बात की। अधिकांश का जबाब यही था कि पुलिस की जिप्सियां तो दोपहर बाद ही जेएनयू के आसपास चक्कर काट रही थीं। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि जब दोपहर बाद से ही दिल्ली पुलिस की जिप्सियों का जमघट लग गया था फिर कैंपस में नकाबपोश हमला करने में कामयाब कैसे हो गए?

क्या दिल्ली पुलिस को शाम के वक्त होने वाले खून-खराबे की खुफिया खबर रविवार सुबह या दोपहर के वक्त ही मिल चुकी थी? अगर जवाब 'हां' है तो फिर पुलिस जेएनयू प्रशासन से मिलकर वक्त रहते कैंपस में हालात बिगड़ने से पहले ही क्यों नहीं पहुंच गई? दूसरा सवाल कि क्या दिल्ली पुलिस की जिप्सियां और उनमें मौजूद पुलिसकर्मी तथा सरकारी बंगलों में रविवार की छुट्टी का आनंद ले रहे आला पुलिस अफसरान जेएनयू प्रशासन के कागजी इजाजत का इंतजार कर रहे थे? ताकि बवाल बढ़ने की स्थिति में जिम्मेदारी का घड़ा दिल्ली पुलिस के सिर न फोड़ा जाए। मतलब हालात बिगड़ने के बाद जब विवि प्रशासन को लगा कि अब पुलिस बुला लेनी चाहिए, तब उसने पुलिस को अधिकृत रूप से कैंपस में आने की इजाजत दे दी।

दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त स्तर के एक अफसर ने सोमवार को आईएएनएस से कहा, "दरअसल कमी पुलिस की तरफ से नहीं थी। पुलिस जेएनयू को लेकर एक महीने से ही हर वक्त अलर्ट मोड पर है। हां, इतना जरूर है कि देश की किसी भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पुलिस बिना विवि प्रशासन के बुलाए या फिर बिना उसकी अनुमति के प्रवेश नहीं ले सकती है। यही रविवार की शाम भी हुआ। एहतियातन पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सियां तो जेएनयू के आसपास हर दिन की तरह रविवार को खड़ी रही होंगी। जब तक विवि प्रशासन ने पुलिस को अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं दी होगी, पुलिस ने प्रवेश नहीं किया होगा।"

इसी पुलिस अफसर के अनुसार, "जब विवि प्रशासन ने पुलिस अंदर बुलाई तब तक छात्र उग्र हो चुके थे। पुलिस ने जब जब नाराज स्टूडेंट्स को समझाने-बुझाने की कोशिशें की, वे पुलिस से ही उलझ गए। एक तरफ छात्र पुलिस से उलझ रहे थे। दूसरी ओर दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम को जेएनयू कैंपस से मदद की लगातार कॉल्स आए जा रही थी। बताइए ऐसे में पुलिस क्या करती? रविवार की घटना में कहीं भी पुलिस को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जैसे और जब जेएनयू प्रशासन ने पुलिस से सहयोग चाहा, हम तुरंत तत्परता से उसके साथ खड़े हो गए।"

अगर पुलिस पहले से ही घटनास्थल पर मौजूद थी तो फिर नकाबपोश हथियारबंद लोगों को कैंपस में पहुंचकर हॉस्टल्स में विद्यार्थियों को लाठी-डंडों और धारदार हथियारों से पीटने का मौके कैसे मिल गया? अधिकारी ने कहा, "नहीं ऐसा नहीं है। नकाबपोश अंदर के थे या बाहर के, अभी इस सवाल का जवाब नहीं मिला है। जांच जारी है। जांच के बाद ही कुछ ठोस निकल कर सामने आएगा।" अगर पुलिस के किसी आला अफसर का यह बयान है तो ऐसे में सवालों के घेरे में विवि प्रशासन का आ जाना लाजिमी है।

रविवार की घटना में क्या कहीं विवि प्रशासन से कोई चूक हुई? विवि प्रशासन ने इस बारे में मीडिया को बताया, "बे-वजह कैंपस के अंदर पुलिस को बुलाने से बच्चे (विद्यार्थी) भड़क सकते थे। इसलिए यह कहना गलत है कि पुलिस नहीं बुलाई। पुलिस बुलाई गई, लेकिन तभी बुलाई गई जब लगा कि बात बढ़ती ही जा रही है।"

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