रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने चारा घोटाले के देवघर कोषागार से फर्जी निकासी के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की जमानत याचिका आज यह कहते हुए खारिज कर दी कि राज्य के मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री के रूप में सभी घोटालों में उनकी भूमिका प्रतीत होती है।
लालू एवं चारा घोटाले के 15 अन्य सह अभियुक्तों को सीबीआई की विशेष अदालत ने पिछले साल 23 दिसंबर को दोषी करार दिया था और छह जनवरी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सजा सुनाई थी। उन्होंने 12 जनवरी को इसके खिलाफ झारखंड उच्च न्यायालय में अपील की थी और जमानत याचिका भी दायर की थी। यह मामला देवघर कोषागार से जालसाजी कर 89.27 लाख रूपये निकाले जाने से संबंधित है।
लालू प्रसाद के अधिवक्ता चितरंजन प्रसाद ने आज यहां बताया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह की पीठ ने लालू यादव की जमानत याचिका पर आज फैसला सुनाया। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इस घोटाले के दौरान लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री थे।
मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के तौर पर लालू यादव की जिम्मेदारी थी कि वह राज्य के हितों की रक्षा करें लेकिन इसके विपरीत न सिर्फ वह चारा घोटाले के सभी मामलों में मौन रहे बल्कि प्रथम दृष्ट्या यह प्रतीत होता है कि वह इन मामलों में स्वयं शामिल थे।
उच्च न्यायालय ने कहा कि लोकलेखा समिति ने वर्षों तक घोटाले से जुड़ी फाइलों को अपने पास रखा लेकिन इन मामलों में कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। साथ ही अदालत ने कहा कि लालू यादव ने न तो साढ़े तीन वर्ष की सजा की आधी अवधि अभी जेलों में काटी है और न ही वह किसी गंभीर बीमारी से भी ग्रस्त हैं, लिहाजा उन्हें इस मामले में जमानत देने का कोई भी पुष्ट आधार नहीं है।
राजद अध्यक्ष लालू पिछले साल 23 दिसंबर से रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं। उन्हें अब तक तीन मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है। इस मामले के अलावा वह चाइबासा कोषागार संबंधी दो अन्य मामलों में दोषी ठहराए जा चके हैं। करीब 950 करोड़ रुपये का चारा घोटाला पशुपालन विभाग में अनियमितताओं से संबंधित है और यह 90 के दशक में सामने आया था। उन दिनों राज्य में लालू के नेतृत्व में राजद सत्ता में थी।