नई दिल्ली: इसे विज्ञान कहें या चमत्कार, लेकिन झारखंड में बसे एक गांव के पास सुबह 8 बजते ही रेल की पटरियां एक-दूसरी से सटने लगती हैं। करीब तीन घंटे में ये पटरियां एक दूसरी से पूरी तरह चिपक जाती हैं, लेकिन इससे भी चौंकाने वाली बात तब होती है जब दोपहर के 3 बजते ही ये पटरियां अपने आप दूर होने लगती हैं।
ये जगह है झारखंड के हजारीबाग से बरकाकाना रेल रूट के पास बसा एक गांव लोहरियाटांड। यहाँ से गुजरने वाली रेल लाइन पर एक प्राकृतिक चमत्कार होता है। इस गांव में रेल पटरियों की विचित्र गतिविधियों ने गाँव के लोगों के साथ रेल अधिकारियों और विज्ञान के लोगों को भी हैरत में डाल दिया है तो वहीं गांव वाले इसे चमत्कार मान पूज कर रहे हैं।
अभी इस रूट पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू नहीं हुई है। ग्रामीणों और रेल पटरियों की हिफाजत करने वालों ने बताया कि हमने कई बार ऐसी हरकत होते देखी है। खूब छानबीन की, लेकिन कारण समझ नहीं आया। पटरियों के चिपकने की प्रक्रिया को हमने मोटी लकड़ी अड़ाकर रोकने की कोशिश भी की, लेकिन नाकाम रहे।
खिंचाव इतना शक्तिशाली था कि सीमेंट के प्लेटफॉर्म में मोटे लोहे के क्लिप से कसी पटरियां क्लिप तोड़कर चिपक जाती हैं। ऐसा 15-20 फीट की लंबाई में ही हो रहा है। इस बारे में एक वैज्ञानिक ने कहा कि वाकई, ये हैरान करने वाली बात है। वैसे, ये मैग्नेटिक फील्ड इफेक्ट भी हो सकता है। ड्रिलींग से ही पता चल पाएगा कि जमीन के अंदर क्या हो रहा है।
वहीं दूसरी ओर, रेलवे इंजीनियर की राय है कि टेंपरेचर ऑब्जर्व करने के लिए लाइन में बीच-बीच में एसएजे (स्वीच एक्सपेंशन ज्वाइंट) लगाया जाता है। जिसे हजारीबाग-कोडरमा रेलखंड में तीन जगहों पर लगाया गया है। हो सकता है कि जहां पर यह हरकत हो रही है, वहां अभी एसएजे सिस्टम नहीं लगाया गया हो। असल कारण तो जांच के बाद ही पता चलेगा।