नयी दिल्ली: जेपी समूह ने आज सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि उसे धन की व्यवस्था करने के लिये ग्रेटर नोएडा को आगरा से जोड़ने वाली 165 किलोमीटर लंबी यमुना एक्सप्रेस-वे परियोजना से अलग होने की अनुमति दी जाये। शीर्ष अदालत ने जेपी इंफ्राटेक की मूल कंपनी जेपी एसोसिएट्स को 11 सितंबर को निर्देश दिया था कि यदि मकान खरीददारों का पैसा लौटाने के लिये वह न्यायालय की रजिस्ट्री में 27 अक्तूबर तक 2000 करोड़ रूपए जमा कराने संबंधित आदेश के तहत धन के बंदोबस्त हेतु अपनी कोई भी सपंति बेचना चाहता है तो उसे इसके लिये न्यायालय की अनुमति लेनी होगी।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष जेपी समूह के वकील अनुपम लाल दास ने इस मामले में शीघ्र सुनवाई के लिये उल्लेख किया। इस पर पीठ ने कहा कि वह 23 अक्तूबर को सुनवाई करेगी। दास ने पीठ से कहा कि उसे एक्सप्रेस वे के लिये 2500 करोड़ रूपए का प्रस्ताव मिला है ओैर वह इस संपति को दूसरी पार्टी को देकर इससे अलग होना चाहता है। दास ने कहा कि कंपनी को फ्लैट खरीदने वालों को पैसा लौटाने के लिये शीर्ष अदालत की रिजस्ट्री में दो हजार करोड़ रूपए जमा कराने के लिये धन की व्यवस्था करनी है।
शीर्ष अदालत ने 11 सितंबर को नोएडा में जेपी विश टाउन परियोजना के फ्लैट खरीददारों की याचिका पर सुनवाई के दौरान कंपनी के निदेशकों के विदेश जाने पर रोक लगा दी थी। इन खरीददारों ने जेपी इंफ्राटेक को दिवालिया घोषित करने के लिये नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में शुरू हुयी कार्यवाही को चुनौती दी है। कोर्ट ने जेपी इंफ्राटेक लि. को दिवालिया घोषित करने के लिये शुरू हुयी कार्यवाही बहाल करते हुये इसके प्रबंधन का नियंत्रण नेशनल कंपनी लॉ ट्िरब्यूनल द्वारा नियुक्त इंटरिम रिजोल्यूशन प्रोफेशनल को तत्काल प्रभाव से सौंप दिया था।