नयी दिल्ली: जम्मू जेल में बंद सात पाकिस्तानी आतंकियों को तिहाड़ जेल स्थानांतरित करने के लिये जम्मू कश्मीर सरकार ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की। राज्य सरकार का आरोप है कि ये पाकिस्तानी आतंकी जेल में बंद स्थानीय कैदियों को भड़का रहे हैं। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने जम्मू कश्मीर सरकार की याचिका पर केन्द्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है।
ये सात आतंकवादी हैं: लश्कर ए तैयबा के वकास मंजूर उर्फ काजिर, मोहम्मद अब्दुल्लाह उर्फ अबु तल्लाह और जफर इकबाल, 2013 में गिरफ्तार पाकिस्तान के मुलतान का जुबेर तल्हा जरोर उर्फ तल्हा (लश्कर ए तैयबा), लश्कर ए तैयबा का ही 2014 में गिरफ्तार मोहम्मद अली हुसैन,2006 में गिरफ्तार अल बदर आतंकी गुट का हफीज अहमद बलूच और 2003 में दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के नादीमार्ग इलाके में 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या का आरोपी जिया मुस्तफा।
पीठ ने केन्द्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करने के साथ ही लश्कर ए तैयबा आतंकी संगठन के पाकिस्तानी आतंकी जाहिद फारूक को जम्मू जेल से अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिये जम्मू कश्मीर सरकार की याचिका के साथ इसे संलग्न कर दिया। पीठ ने कहा कि सारी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की जायेगी। राज्य सरकार के वकील शोएब आलम ने कहा कि विभिन्न संगठनों के इन आतंकवादियों को जम्मू जेल से बाहर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है क्योंकि वे स्थानीय कैदियों को गुमराह कर रहे हैं और लोगों तथा सुरक्षाकर्मियों के लिये खतरा बन रहे हैं।
पीठ ने शोएब आलम से जानना चाहा कि कितने आतंकियों को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने की आवश्यकता है तो उन्होंने कहा कि सात पाकिस्तानी आतंकियों को स्थानांतरित करने की याचिका आज सूचीबद्ध है। राज्य सरकार का कहना है कि यदि तिहाड़ जेल में भेजना संभव नहीं हो तो उन्हें हरियाणा और पंजाब की दूसरी कड़ी सुरक्षा वाली जेलों में स्थानांतरित किया जा सकता है।
इस पर पीठ ने कहा कि सारे मामले पर विचार किया जायेगा। साथ ही उसने राज्य सरकार के वकील से कहा कि वह इन पाकिस्तानी आतंकियों पर भी नोटिस की प्रति की तामील सुनिश्चित करे। जम्मू कश्मीर सरकार ने 14 फरवरी को हुये पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के शहीद होने की घटना के बाद लश्कर-ए-तैयबा के एक आतंकवादी जाहिद फारूक को जम्मू जेल से अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिये शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। फारूक को 19 मई, 2016 को सुरक्षा बलों ने उस वक्त गिरफ्तार किया था जब वह सीमा पर लगी बाड़ से घुसने का प्रयास कर रहा था।
राज्य सरकार ने कहा था कि प्राप्त खुफिया जानकारी से संकेत मिला है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के आतंकवादी जेल में बंद दूसरे कैदियों को गुमराह कर रहे हैं। राज्य सरकार के अनुसार उसे यह भी पता चला है कि कैदियों और दूसरे लोगों को काफी स्थानीय समर्थन प्राप्त है और इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें आतंक से जुड़ी गतिविधियां करने के लिये सूचनाएं, संसाधन और दूसरी मदद भी मिल रही हो।
जम्मू कश्मीर सरकार ने इसका मुकदमा भी दिल्ली की अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है क्योंकि उसे आतंकी को अदालत ले जाने और वापस जेल लाने के दौरान उसकी सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों और आम जनता को खतरा उत्पन्न होने की भी आशंका है। राज्य सरकार के वकील ने पिछले साल एक पुलिस दल पर हुये हमले का उदाहरण देते हुये कहा कि इसमें आतंकी को अस्पताल ले जाते वक्त हुये हमले में पुलिसकर्मी मारे गये थे और पाकिस्तानी आतंकी कैदी को हिरासत से छुड़ा लिया गया था। सरकार ने कहा कि फारूक को जम्मू कश्मीर की जेल से राज्य के बाहर किसी उच्च सुरक्षा वाली जेल में स्थानांतरित करना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में हैं।
राज्य सरकार का कहना है कि निजी प्रतिवादियों की तरह ये विदेशी कैदी जेल में स्थानीय कश्मीरी युवकों को भरमा रहे हैं और स्थानीय जेलों में आतंकी संगठनों से संबंध रखने या इसी तरह की पृष्ठभूमि वाले कैदियों का जमावड़ा है। सरकार की याचिका में कहा गया है कि ये आतंकी कैदी स्थानीय युवकों को गुमराह कर रहे हैं और आतंक की समस्या को बढ़ावा दे रहे हैं। राज्य सरकार की याचिका के अनुसार, ‘‘यह भी संदेह किया जाता है कि जम्मू कश्मीर राज्य की जेलों में बंद कैदियों को वापस लेने का अनुरोध किये जाने पर आमतौर पर पाकिस्तान ध्यान नहीं देता है। हालांकि, जब दोषी कैदियों को राज्य की जेल से बाहर स्थानांतरित कर दिया जाता है तो पाकिस्तान सरकार उन्हें वापस पाकिस्तान में लेने में दिलचस्पी लेता है।’’