नई दिल्ली: करीब 56 साल पहले रुपहले पर्दे पर एंट्री और देखते ही देखते दक्षिण भारत की सबसे बड़ी एक्ट्रेस बन गईं। राजनीति में आईं तो बेहद कम समय में वो सफर तय किया कि आज उनके कद के बराबर तमिलनाडु में कोई राजनैतिक विरोधी नहीं दिखता। ये कहानी है उस जयललिता की जिनके लिए पूरा तमिलनाडु सदमे में है। जयललिता खुद अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही हैं, बाहर सड़क पर हजारों समर्थक बेसब्र हैं और अपनी अम्मा के लिए रो रहे हैं।
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'अम्मो' से अम्मा तक.. क्या है कहानी जयललिता की?
जयललिता के कामयाब सफरनामे की शुरुआत करीब 56 साल पहले फिल्मी परदे से हुई। एक वक्त था जब परदे पर एम जी रामचंद्रन और जयललिता की जोड़ी को फिल्म की कामयाबी की गारंटी माना जाता था। उस वक्त एमजीआर के साथ जयललिता ने धड़ाधड़ फिल्में की। दोनों की जोड़ी कामयाबी की गारंटी थी लेकिन इस परदे के इसी समीकरण के सहारे एमजीआर के पीछे-पीछे जयललिता राजनीति में आईं और उस मुकाम पर पहुंच गईं जो किसी और हिरोइन को मयस्सर नहीं हुआ।
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जयललिता कैसे बनीं तमिलनाडु की सबसे बड़ी लीडर ?
1977 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने एमजीआर ने जयललिता को राजनीति में लाया। 1982 में AIADMK के टिकट से जयललिता तमिलनाडु में विधायक बनीं और फिर पार्टी के चुनाव की प्रचार सचिव भी। यहीं से जयललिता की सिय़ासी तकदीर बदल गई और दो साल उन्हें राज्यसभा के लिए निर्वाचित किया तो ज़ाहिर हो गया कि एमजीआर की असल उत्तराधिकारी वही हैं।
तीन दिनों तक एमजीआर के शव के पास मौजूद रहीं जयललिता
जयललिता की ज़िंदगी में ट्रेजडी और जल्लात का एक दौर शुरु होने वाला था। 1987 में राजनीतिक गुरु एमजीआर के निधन के बाद उनकी पत्नी जानकी और जयललिता में विरासत का संघर्ष हुआ। जब एमजीआर का देहांत हुआ तो उनके परिवार वालों ने जयललिता को उनके घर तक में नहीं घुसने दिया। जयललिता एमजीआर के घर के सामने कार से उतरीं और अपनी हथेलियों को ज़ोर ज़ोर से गेट पर मारने लगीं। जब गेट खुला तो किसी ने उनसे नहीं बताया कि एमजीआर के शव को कहाँ रखा गया है। वो गेट से पीछे की सीढ़ियों तक कई बार दौड़ कर गईं लेकिन एमजीआर के घर का हर दरवाज़ा उनके लिए बंद कर दिया गया।
बाद में उन्हें बताया गया कि एमजीआर के पार्थिव शरीर को पिछले दरवाज़े से राजाजी हॉल ले जाया गया है। जयललिता तुरंत अपनी कार में बैठीं और ड्राइवर से राजाजी हॉल चलने के लिए कहा। वहां वो किसी तरह अपने आप को एमजीआर के सिरहाने पहुंचाने में सफ़ल हो गईं।" जयललिता को एमजीआर से दूर रखने की बहुत कोशिशें हुई लेकिन तमाम अपमान सहकर जयललिता तीन दिनों तक एमजीआर के शव के पास मौजूद रहीं।
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