श्रीहरिकोटा: भारत ने सोमवार तड़के श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से होने वाले दूसरे चंद्रमा मिशन, चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण तकनीकी खामी के चलते तय समय से लगभग एक घंटे पहले रद्द कर दिया। भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक उपग्रह ले जाने वाले रॉकेट जीएसएलवी मार्क-।।। में आई समस्या की गंभीरता का आकलन कर रहे हैं जिसने 976 करोड़ रुपये की इस महत्त्वकांक्षी चंद्रमा मिशन पर फिलहाल के लिए विराम लगा दिया है और भविष्य में प्रक्षेपण की तिथि पर अनिश्चितता बरकरार है।
इसरो ने उस खामी के पीछे के कारण के बारे में अब तक कुछ नहीं बताया है जो उस वक्त आई जब रॉकेट के स्वदेशी क्रायोजनिक ऊपरी चरण के इंजन में द्रव प्रणोदक डाला जा रहा था। लेकिन विभिन्न अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने कहा है कि जल्दबाजी में किसी बड़ी आपदा मोल लेने की बजाए इसके प्रक्षेपण को टालने के लिए एजेंसी की सराहना की जानी चाहिए।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ‘बाहुबली’ कहे जा रहे भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण वाहन जीएसएलवी मार्क-।।। के जरिए होने वाले चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण देखने के लिए यहां मौजूद थे। यह प्रक्षेपण तड़के 2:51 बजे होना था।
मिशन के प्रक्षेपण से 56 मिनट 24 सेकंड पहले मिशन नियंत्रण कक्ष से घोषणा के बाद रात 1.55 बजे रोक दिया गया। इसरो के जनसंपर्क विभाग के एसोसिएट निदेशक बी आर गुरुप्रसाद ने कहा, ‘‘प्रक्षेपण यान प्रणाली में टी - माइनस 56 मिनट पर एक तकनीकी खामी दिखी और एहतियात के तौर पर चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण आज के लिए टाल दिया गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘नई तारीख की घोषणा बाद में की जाएगी।’’ इसरो के एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘‘तकनीकी खामी की वजह से प्रक्षेपण टाला जाता है। प्रक्षेपण के लिए निर्धारित अवधि के भीतर प्रक्षेपण करना संभव नहीं है। प्रक्षेपण की नई तारीख की घोषणा बाद में की जाएगी।’’
अंतरिक्ष एजेंसी ने इससे पहले प्रक्षेपण की तारीख जनवरी के पहले सप्ताह में रखी थी, लेकिन बाद में इसे बदलकर 15 जुलाई कर दिया था। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इस 3,850 किलोग्राम वजन के अंतरिक्ष यान को अपने साथ एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर लेकर जाना था। इस उपग्रह को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरना था जहां वह इसके अनछुए पहलुओं को जानने का प्रयास करता। इससे 11 साल पहले इसरो ने पहले सफल चंद्रमा मिशन - चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण किया था जिसने चंद्रमा के 3,400 चक्कर लगाए और 29 अगस्त, 2009 तक 312 दिनों तक वह काम करता रहा। ध्यानपूर्वक बनाई गई कक्षीय चरणों की योजना के अनुरूप इसे चंद्रमा पर उतरने में 54 दिन का वक्त लगता।
पिछले हफ्ते प्रक्षेपण संबंधी पूर्ण अभ्यास के बाद रविवार सुबह 6.51 बजे इसके प्रक्षेपण की उल्टी गिनती शुरू हुई थी। इसरो का सबसे जटिल और अब तक का सबसे प्रतिष्ठित मिशन माने जाने वाले ‘चंद्रयान-2’ के साथ भारत, रूस, अमेरिका और चीन के बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला चौथा देश बन जाता। कोलकाता के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) में सेंटर फॉक एक्सिलेंस इन स्पेस साइंसेज इंडिया के प्रमुख राजेश कुंबले नायक ने कहा, “प्रक्षेपण प्रणालियों के मामले में इसरो की सफलता का दर असाधारण रहा है। आखिरी पल तक रॉकेट के जटिल तंत्र की जांच करना और उनका निदान करना अपने आप में एक कला है जिसमें लगता है कि उन्हें महारत हासिल है।”
नायक ने कहा, “मुझे खुशी है कि इसरो के वैज्ञानिकों ने जल्दबाजी कर एक आपदा मोल लेने की बजाए प्रक्षेपण टाल दिया । मेरा अनुमान है कि मिशन को कुछ हफ्तों तक रोक कर रखा जाएगा जो विफलता से बहुत बेहतर होगा।” असुविधाजनक समय होने के बावजूद सभी आयु वर्ग के दर्शक इस गौरवशाली क्षण को देखने पहुंचे थे। इसरो ने प्रक्षेपणों का गवाह बनने के लिए दर्शकों के लिए हाल ही में एक गैलरी स्थापित की थी। वहीं आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले छह दशकों में से 109 चंद्रमा मिशनों में 61 सफल हुए हैं और 48 विफल रहे। चंद्रमा मिशनों पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के डेटाबेस ने यह आंकड़े सामने रखे हैं।
इसरो के पूर्व प्रमुख माधवन नायर ने पीटीआई-भाषा को बताया, “चंद्रमा मिशनों की सफलता दर करीब 60 प्रतिशत है। उपग्रह प्रक्षेपणों के उलट चंद्रमा मिशनों की प्रकृति जटिल होती है। हालांकि पिछले छह दशकों में जुटाए गए अनुभव के साथ सफलता की दर में सुधार हो रहा है।” 1958 से लेकर 2019 तक भारत के साथ ही अमेरिका, यूएसएसआर (अब रूस), जापान, यूरोपीय संघ और चीन ने विभिन्न चंद्रमा मिशनों को लॉन्च किया है। चंद्रमा तक पहले मिशन की योजना 17अगस्त 1958 में अमेरिका ने बनाई थी लेकिन ‘पायनियर 0’ का प्रक्षेपण असफल रहा। सफलता छह मिशन के बाद मिली। पहला सफल चंद्रमा मिशन लूना 1 था जिसका प्रक्षेपण सोवियत संघ ने चार जनवरी,1959 को किया था।