नई दिल्ली: श्रीनगर के अस्पताल में कल आतंकियों ने जिस तरह से हमला कर एक खूंखार लश्कर आतंकी को भगाने में कामयाब हुए हैं उससे साफ है कि आतंकियों को पुलिस के एक-एक मूवमेंट की पूरी जानकारी थी। सवाल ये है कि आखिर आतंकियों को ये जानकारी कहां से मिली क्योंकि मंगलवार सुबह करीब 11.30 बजे सरकारी अस्पताल के गेट पर सेंट्रल जेल से कैदियों को लेकर आई गाड़ी जैसे ही रुकी घात लगाकर बैठे आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग कैदियों के साथ चल रहे पुलिसवालों को टारगेट कर किया गया। फायरिंग होते ही अस्पताल के गेट पर भगदड़ मच गई।
जेल की इसी गाड़ी में सवार था लश्कर का खूंखार आंतकी और हाफिज का गुर्गा नावीद जट्ट उर्फ अबु हंजाला जो फायरिंग के बाद अस्पताल के बाहर मची भगदड़ का फायदा उठाकर भाग निकला। बताया जा रहा है कि जैसे ही आतंकियों ने पुलिसवालों को टारगेट कर फायरिंग की पुलिस के कब्जे में मौजूद नावीद ने अपने साथ चल रहे पुलिसवाले का हथियार छीना और उसी से उन पर फायरिंग कर दी जिसमें एक जवान शहीद हो गया। जिस तरह से ये पूरा हमला हुआ और लश्कर आतंकी नावीद फरार होने में कामयाब हुआ उससे साफ है कि हमला पूरी प्लानिंग के साथ और नावीद को छुड़ाने के लिए ही किया गया था।
सूत्रों के मुताबिक हमले को अंजाम देने की प्लानिंग एक दिन पहले तब शुरू हुआ था जब नावीद ने जेल प्रशासन से सीने और पेट में दर्द की शिकायत की थी और जेल प्रशासन ने मंगलवार को नावीद को अस्पताल ले जाने का फैसला किया। मंगलवार को नावीद और दूसरे कैदियों को लेकर पुलिस अस्पताल के लिए निकली। जेल से अस्पताल की दूरी करीब आठ किलोमीटर है। इधर, पुलिस की टीम जेल से निकली और उधर नावीद के साथी अस्पताल के गेट पर उनका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही अस्पताल के गेट पर पुलिस ने कैदियों को गाड़ी से उतारा आतंकियों ने हमला कर दिया।
आतंकी जानते थे अस्पताल की भीड़ के बीच पुलिस को फायरिंग करने में मुश्किल होगी। हुआ भी वही, साथियों को गोली लगने के बावजूद पुलिसवाले फायरिंग नहीं कर पाए। आतंकियों ने जिस तरह से हमले को अंजाम दिया और नावीद को भगाकर ले जाने में कामयाब हुए। उससे साफ है कि उन्हें पुलिस के एक-एक मूवमेंट की जानकारी थी लेकिन सवाल है कि आखिर आतंकियों को जेल से नावीद के अस्पताल लाने की जानकारी कैसे मिली?
किसने नावीद और दूसरे कैदियों के अस्पताल आने की सूचना लीक की क्योंकि इस तरह की जानकारी सीक्रेट रहती है। ये जानकारी भी किसी से शेयर नहीं की जाती है कि जेल की गाड़ी में कौन-कौन सवार है। यानी ये जानकारी जेल के अंदर से ही किसी ने लीक है। अब पुलिस और जांच एजेंसियों के सामने ये पता लगाने की चुनौती है कि की आखिर जेल के अंदर आतंकियों का मददगार कौन है।