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International Women's Day: नारी के सशक्तिकरण से ही पुरुष का सशक्तिकरण संभव है

‘मार्कण्डेय पुराण’ में जब देवता असुरों से पराजित होते हैं तब उनकी प्रार्थना पर नारी-रुप में शक्ति का आविर्भाव होता है और वही शक्ति असुरों का संहार करती है। तात्पर्य यह है कि जब पुरुष असत् शक्तियों के समक्ष असहाय हो जाता है तब स्त्री ही उसकी शक्ति बनक

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: March 07, 2018 23:45 IST
International womens da- India TV Hindi
International womens da

International Women's Day: संसार की आधी आबादी महिलाओं की है। अतः विश्व की सुख-शांति और समृद्धि में उनकी भूमिका भी विशेष रुप से रेखांकनीय हैं। भारतीय-चिन्तन-परम्परा में यह तथ्य प्रारंभ से ही स्वीकार किया जाता रहा है। इसलिए भारतीय-संस्कृति में नारी सर्वत्र शक्ति-स्वरुपा है ; देवी रुप में प्रतिष्ठित है। मानव समाज में शक्ति के तीन रुप हैं- बौद्धिक शक्ति, आर्थिक शक्ति और सामाजिक शक्ति। भारत में इन तीनों शक्तियों के प्रतीक रुप में क्रमशः सरस्वती, लक्ष्मी और काली को प्रतिष्ठा मिली है। नारी सशक्तिकरण की इससे बड़ी स्वीकृति और नहीं हो सकती। न केवल भारतवर्ष में अपितु भारत के बाहर यूरोपीय देशों में भी शक्ति की प्रतिष्ठा स्त्री रुप में ही मिलती है। यूरोप में सौन्दर्य की देवी ‘वीनस’ और बुद्धि की देवी ‘एथेना’ की परिकल्पना की गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नारी की शक्ति को विश्वस्तर पर प्राचीन काल से ही स्वीकार किया जाता रहा है। 

भारतीय पुराण-ग्रंथ नारी शक्ति की कथाओं से समृद्ध हैं। ‘श्रीमद्देवीभागवत्’, ‘मार्कण्डेय पुराण’ आदि पुराणग्रंथों में नारी शक्ति का स्तवन इसका साक्षी है। आजकल टेलिविजन पर माता काली की पौराणिक कथाओं पर केन्द्रित धारावाहिक ‘महाकाली’ प्रसारित हो रहा है। इस सीरियल के कथा-प्रसंग नारी की शक्ति-सत्ता प्रमाणित करते हैं। ‘मार्कण्डेय पुराण’ में जब देवता असुरों से पराजित होते हैं तब उनकी प्रार्थना पर नारी-रुप में शक्ति का आविर्भाव होता है और वही शक्ति असुरों का संहार करती है। तात्पर्य यह है कि जब पुरुष असत् शक्तियों के समक्ष असहाय हो जाता है तब स्त्री ही उसकी शक्ति बनकर उसका उद्धार करती है। 

नारी द्वारा पुरुष के कल्याण की कथाएँ केवल काल्पनिक अथवा पौराणिक आख्यान मात्र नहीं है। ये मानव जीवन का यथार्थ भी हैं। सामान्य दैनन्दिन जीवन में संघर्ष से हारे-थके पुरुष को पुत्री, पत्नी , बहिन, माता आदि रुपों में स्त्री ही संबल देती है। ‘कामायनी’ महाकाव्य में निराश और हताश मनु को श्रद्धा ही नयी सृष्टि का विकास करने के लिए प्रेरित करती है। देवासुर संग्राम में युद्धरत दशरथ के रथ की धुरी को रोकने के लिए कैकेयी रथ-चक्र में अपनी अंगुली लगाकर उन्हें विजयी बनाती है। अज्ञातवास के उपरान्त पाण्डवों को कुंती का संदेश संघर्ष की प्रेरणा देता है। इतिहास में रानी पद्मिनी, वीरमाता जीजाबाई, महारानी दुर्गावती, महारानी लक्ष्मीबाई, रानी अवन्तीबाई आदि की प्रेरक कथाएं भी नारी के सशक्तिकरण की साक्षी हैं।

तथ्य यह है कि स्त्री न पहले कभी अबला रही और न अब है। पुरुष की शक्ति का समस्त स्त्रोत उसी के समर्पण में निहित है। उसके सामाजिक सशक्तिकरण के प्रयत्न में केवल इतना अपेक्षित है कि पुरुष प्रधान समाज उसे आवश्यक सहयोग दे ; उसकी क्षमताओं को विकसित होने का अवसर दे। उसे हीन-दृष्टि से न देखे और उसकी क्षमताओं का सम्मान करे। किसी ने सत्य ही कहा है-

                                                            ‘एक नहीं दो-दो मात्राएं
                                                            नर से भारी नारी ।’
अर्थात नारी शब्द ही नर की अपेक्षा अधिक गरिमामय है। नारी पुरुष से कहीं अधिक सशक्त है और उसके  सशक्तिकरण से ही पुरुष का सशक्तिकरण भी संभव है ; क्योंकि स्त्री ही पुरुष की प्रेरणा है। स्त्री के सशक्त मातृत्व से ही भावी पीढ़ी का शक्तिपूर्ण उदय संभव है। अतः नारी सशक्तिकरण का संकल्प समय की माँग भी है। अंतरराष्ट्रीय महिलादिवस के अवसर पर नारी की सृजनात्मक उर्जा को शत-शत वंदन।

डॉ. कृष्णगोपाल मिश्र
विभागाध्यक्ष-हिन्दी
शासकीय नर्मदा स्नातकोत्तर महाविद्यालय
 होशंगाबाद म.प्र.

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